वागीश्वरी सवैया (122×7 + 12)
दया का महामन्त्र धारो मनों में,दया से सभी को लुभाते चलो।
न हो भेद दुर्भाव कैसा किसी से,सभी को गले से लगाते चलो।
दयाभूषणों से सभी प्राणियों के,मनों को सदा ही सजाते चलो।
दुखाओ मनों को न थोड़ा किसी का,दया की सुधा को बहाते चलो।
कलाधर छंद (गुरु लघु की 15 आवृति के बाद गुरु)
मोह लोभ काम क्रोध वासना समस्त त्याग, पाप भोग को मनोव्यथा बना निकालिए।
ज्ञान ध्यान दान को सजाय रोम रोम मध्य, ध्यान ध्येय पे रखें तटस्थ हो बिराजिए।
ईश भक्ति चित्त राख दृष्टि भोंह मध्य साध, पूर्ण निष्ठ ओम जाप मौन धार कीजिए।
वृत्तियाँ समस्त छोड़ चित्त को अधीन राख, योग पाल रोग शोक त्रास को मिटाइए।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
मनों का प्रयोग असहज करता हुआ प्रयोग है. आप सही कह रहे हैं, भाई रामबली जी. मैं कहना चाह रहा था.लेकिन टाइप करने के समय इस विन्दु को अंकित करना भूल गया.
शुभ-शुभ
आदरणीय बासुदेव अग्रवाल नमन जी, मेरे कहे का मान रखने के लिए हार्दिक धन्यवाद.
यह अवश्य है कि, सवैया छन्द की तुकान्तता जितनी सधी हुई है कलाधर छन्द की तुकान्तता पर वैसा अभ्यास नहीं हो पाया है. सतत अभ्यासकर्म करते रहें.
हार्दिक शुभेच्छाएँ
जनाब वासुदेव अग्रवाल ',नमन'जी आदाब,अभी मुझे इस छन्द के विधान को समझने में समय लगेगा,बहरहाल आपको जनाब सौरभ पाण्डेय जी मार्गदर्शन दे ही चुके हैं,मेरी तरफ़ से इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
सवैया को चार पंक्तियों में लिखें और कलाधर छन्द चार पंक्तियों का छन्द है. अतः दो पंक्तियाँ और चाहिए अन्यथा आपकी प्रस्तुति अधूरी है.
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