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वागीश्वरी सवैया और कलाधर छंद

वागीश्वरी सवैया (122×7 + 12)

दया का महामन्त्र धारो मनों में,दया से सभी को लुभाते चलो।
न हो भेद दुर्भाव कैसा किसी से,सभी को गले से लगाते चलो।
दयाभूषणों से सभी प्राणियों के,मनों को सदा ही सजाते चलो।
दुखाओ मनों को न थोड़ा किसी का,दया की सुधा को बहाते चलो।

कलाधर छंद (गुरु लघु की 15 आवृति के बाद गुरु)

मोह लोभ काम क्रोध वासना समस्त त्याग, पाप भोग को मनोव्यथा बना निकालिए।
ज्ञान ध्यान दान को सजाय रोम रोम मध्य, ध्यान ध्येय पे रखें तटस्थ हो बिराजिए।
ईश भक्ति चित्त राख दृष्टि भोंह मध्य साध, पूर्ण निष्ठ ओम जाप मौन धार कीजिए।
वृत्तियाँ समस्त छोड़ चित्त को अधीन राख, योग पाल रोग शोक त्रास को मिटाइए।


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 27, 2016 at 12:04pm
आदरणीय सौरभ सर मेरे इस छोटे से प्रयास पर आपने इतना समय दिया और पग पग पर मेरा मार्ग दर्शन कर रहे हैं में तो धन्य हुवा। आती है उर्दू जबाँ सीखते सीखते की तर्ज़ पर भाषा की ये बारीकियां तो आप रामबली जी और तमाम obo के साथियों की सोहबत से धीरे धीरे जरूर समझ में आएगी। आदरणीय वरद हस्त यूँ ही बनाये रखें।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 27, 2016 at 11:57am
आदरणीय रामबली जी आपकी समीक्षा से अभिभूत हूँ। मनों में लिखते समय मेरे मन में भी दिलों का विचार आया था पर मैंने दोनों में कोई फर्क नहीं समझते हुए संस्कृत आधारित शब्द को चुन लिया। आपका आशीर्वाद सदैव यूँ ही बना रहे कि इतनी बारीकियों की तरफ ध्यान आकर्षित किया है।

कलाधर में 'कीजिए' शायद आपको खटका होगा। इसका यदि कोई विकल्प सुझा सकें तो आभारी रहूंगा। इसके अलावा भी तुकांतता में कोई चुक है तो कृपया उचित मार्गदर्शन करें। वैसे घनाक्षरी में तो इस तरह की तुकों का धड़ल्ले से प्रयोग होता है।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 26, 2016 at 10:51pm

मनों का प्रयोग असहज करता हुआ प्रयोग है. आप सही कह रहे हैं, भाई रामबली जी. मैं कहना चाह रहा था.लेकिन टाइप करने के समय इस विन्दु को अंकित करना भूल गया. 

शुभ-शुभ

Comment by रामबली गुप्ता on October 26, 2016 at 6:14pm
वाह आद0 वासुदेव भाई जी पहले तो आप दोनों छंदों के लिए हृदय से बधाई लीजिये। वागीश्वरी, महाभुजंगप्रयात, कलाधर आदि छंद लिखना यदि कठिन नही तो उतना सहज भी नही अतः इन छंदों पर आपके प्रयास को देखकर बहुत ही प्रसन्नता हुई है। शिल्प की बात करें तो कलाधर छंद में तुकांतता के बारे में आद0 सौरभ सर की टिप्पणी से सहमत हूँ। वागीश्वरी में तुकांतता और शिल्प सब ठीक है बस थोड़ा 'मनों' शब्द के प्रयोग पर आशंकित हूँ इस सन्दर्भ में आद0 सौरभ सर का मार्गदर्शन चाहूँगा। वैसे मनों के स्थान पर दिलों का भी प्रयोग किया जा सकता है।पुनः बधाई। सादर
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 26, 2016 at 4:01pm
आदरणीय समर कबीरजी आपने रचना की सराहना की मैं धन्य हो गया। बहुत आभार।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 26, 2016 at 3:59pm
आदरणीय सौरभ जी आप की प्रेरणा से ही आज कलाधर छंद में दो और पंक्तियाँ जोड़ पाया। आप जैसे गुणीजनों के मध्य बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। आपका बहुत बहुत आभार।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 26, 2016 at 3:30pm

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल नमन जी, मेरे कहे का मान रखने के लिए हार्दिक धन्यवाद. 

यह अवश्य है कि, सवैया छन्द की तुकान्तता जितनी सधी हुई है कलाधर छन्द की तुकान्तता पर वैसा अभ्यास नहीं हो पाया है. सतत अभ्यासकर्म करते रहें. 

हार्दिक शुभेच्छाएँ

 

Comment by Samar kabeer on October 26, 2016 at 3:22pm

जनाब वासुदेव अग्रवाल ',नमन'जी आदाब,अभी मुझे इस छन्द के विधान को समझने में समय लगेगा,बहरहाल आपको जनाब सौरभ पाण्डेय जी मार्गदर्शन दे ही चुके हैं,मेरी तरफ़ से इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2016 at 11:17pm

सवैया को चार पंक्तियों में लिखें और कलाधर छन्द चार पंक्तियों का छन्द है. अतः दो पंक्तियाँ और चाहिए अन्यथा आपकी प्रस्तुति अधूरी है. 

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