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हाँ रोते को हँसाना चाहता है(ग़ज़ल)/सतविन्द्र कुमार राणा

1222 1222 122
हाँ रोते को हँसाना चाहता है
ये दिल ऐसा बहाना चाहता है।

है जीना ठीक खातिर दूसरों की
यही सबको बताना चाहता है।

हमेशा से शरारत को बढ़ाया
शराफत आजमाना चाहता है।

जमीं जो बर्फ रिश्तों पे दिखाई
उसी को अब गलाना चाहता है।

फ़िजा में फैलता है जो कुहासा
उसे ही तो हटाना चाहता है।

चला इंसानियत की राह 'राणा'
वही खुद मुस्कराना चाहता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 15, 2016 at 4:09pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,यापको प्रयास पसन्द आया यह सार्थक हुआ।बहुत् बहुत् आभार स्वीकारें।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 15, 2016 at 4:07pm
आदरणीय समर कबीर जी सादर हार्दिक आभार संग नमन!आपके अनुमोदन से प्रयास सार्थक हुआ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2016 at 10:20am

आदरणीय सतविन्द्र भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on November 9, 2016 at 5:11pm
जनाब सतविन्द्र कुमार'राणा'जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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