अरकान – 212 2 122 122 12
काले बादल कभी जब बिखर जायेंगे |
ए नजारे भी बेशक बदल जायेंगे |
मुस्कुरा के ना देखो हमें आज यूँ,
दिल के अरमाँ हमारे मचल जायेंगे|
हमको मारो न खंज़र से ऐ महज़बी,
रूठ जाओ तो हम यूँ ही मर जायेंगे|
आके देखो कभी तुम हमारी गली,
ए इरादे तुम्हारे बदल जायेंगे|
लैला-मजनू हैं क्या शीरी फरहाद क्या,
प्यार में हम भी हद से गुज़र जायेंगे|
संग दिल हैं वे लेकिन मैं हूँ मुतमइन,
सुनके रुदाद मेरी पिघल जायेंगे|
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरनीय बैज नाथ भाई , बहर खूब निभा लिया है आपने , बातें भी अच्छी कही है , हार्दिक बधाइयाँ प्रयास के लिये । लेकिन काफिया न होने से आपकी रचना गज़ल होने से रह गई है ।
आदरणीय गोपाल साहेब व समीर साहेब ..............बहुत बहुत शुक्रिया ............मैं इस ग़ज़ल को सुधार कर पुन: पोस्ट करूँगा |
इस गजल में काफिया नहीं है . र ल से अ का स्वर निकलता है काफिया दीर्घ स्वर का ही होता है
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