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दर्द लिखता था मैं अपना और तराना बन गया

2122   2122   2122   212

 

दर्द लिखता था मैं अपना और तराना बन गया|

इस तरह लिखने का देखो इक बहाना बन गया|

मैं परिंदा था अकेला मस्त रहता था यहाँ

एक दिन नज़रों का उनकी मैं निशाना बन गया |

 

है बड़ा कमजर्फ वो भी देखिये इस दौर में ,

डालकर हमको कफस में ख़ुद सयाना बन गया|

 

दासतां मत पूछिये हमसे हमारे प्यार की

काम उनका रूठना अपना मनाना बन गया|

 

जिंदगी की राह में मैं भी अकेला था मगर,

हमसफ़र तुम मिल गए तो इक ठिकाना बन गया|

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 19, 2016 at 11:41pm

आदरणीय धर्मेन्द्र साहेब ..................बहुत बहुत शुक्रिया आपका   

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 19, 2016 at 10:58pm

बहुत ख़ूब, दाद कुबूल करें।

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 19, 2016 at 2:51pm

आदरणीय अमोद साहेब ..................बहुत बहुत शुक्रिया  

Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 19, 2016 at 10:24am
वह्ह्ज बहुत खूब

बधाई नमन
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 17, 2016 at 9:31pm

आदरणीय नरेंद्र साहेब .............बहुत - बहुत शुक्रिया आपका

Comment by narendrasinh chauhan on November 17, 2016 at 3:17pm

सुन्दर रचना

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 16, 2016 at 8:57pm

आदरणीय ब्रिजेश .............बहुत-बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 15, 2016 at 9:32pm
सुन्दर ग़ज़ल..
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 15, 2016 at 8:56pm

आदरणीय समर कबीर साहेब ..............ममनून हूँ आपका |

Comment by Samar kabeer on November 15, 2016 at 8:16pm
जनाब बैजनाथ शर्मा'मिंटू'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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