बुद्धिजीवियों की एक ही हसरत
सुख समृद्धि को देश में है लाना ।
संभालकर रखना अपनी विरासत,
आपसी झगड़ों से सबको बचाना ।
इसके लिए खुद से करते कसरत
बिना किए कभी कोई भी बहाना ।
कोसों दूर रहती है इनसे मुसीबत
मिलती इन्हे खुशियों का खजाना ।
सभी लोग जानते इनकी हकीकत
आलसी सदा करते अनेकों बहाना ।
ऐसे लोगों की होती एक फितरत
दूसरों की कमी पर उंगली उठाना ।
समाज को दिखाते अपनी लियाकत,
समाज के सुधार से सदा मुंह चुराना ।
पूरी नहीं होती इनकी कोई हसरत
तो अपने लोगों पर गुस्सा दिखाना ।
देश प्रेमी करता नहीं कोई शरारत,
उसे आता है समस्या को सुलझाना ।
उन्हें काम से कभी मिलती न फुरसत
बैठ परिवार के संग कुछ वक्त बिताना ।
प्रेम से लिखा राम आश्रय इसके बावत
सभी लोगों ने सीख लिया रिश्ता निभाना ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आपको मेरा आभार आपके महत्वपूर्ण मार्ग दर्शन के लिए मैं आपका आभारी हूँ ।
आदरणीय राम आश्रय जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. साथ ही "आलसी लोग करते अनेकों बहाना।" इस पंक्ति पर पुनर्विचार निवेदित है. सादर
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