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एक नज़्म ,मनोज अहसास

आज जब तय है मुहब्बत से रिहा हो जाना
सोचता हूँ के ज़रा तेरी गली से गुज़रू
फिर तेरी याद के मखमल के दरीचे को ज़रा
खुद से लिपटाऊ,तमन्नाओं को छू लूँ,जी लूँ

जबकि ज़ाहिर है मेरे पास तेरे गम का समा
सिर्फ कुछ रोज़ इनायत की रवानी में रहा
फिर भी ये मानने को दिल कहाँ राजी है सनम
मेरा किरदार कम क्यों तेरी कहानी में रहा

हर तरफ एक सी उलझन का असर लगता है
भूख के,दर्द के,एहसास के,शोलो की हवा
रूठ जाती है इशारों की जुबां जब मुझसे
तब बहुत झूठ सी लगती है इबादत ओ दुआ

फूक दूँ तेरी हसीं याद का चोला दिलबर
या उतर जाएँ मेरी रूह से चाहत के निशां
खुद पे रख लेता हूँ फिर फ़र्ज़ का बेदाग कफ़न
झूठ तो झूठ ही है झूठ का क्या रंग बयां

रात के बाद उजालों की कहानी लेकर
सुबह आई तो मगर रौशनी तो बाकी है
जब तलक भूख से बोझिल हैं कहीं भी ये जहाँ
तब तलक साँस चले ज़िन्दगी तो बाकी है

आजा चल ढूंढते हैं दर्द के मारो का नगर
है ये मुमकिन के वहाँ इश्क़ का घर बार बने
गर्मी ए इश्क़ में चाहत की रवानी में सनम
कुछ यहाँ पीर हुए और कई मैखार बने


मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by मनोज अहसास on January 19, 2017 at 9:04am
Bahut bahut aabhar aadarniya RAJESH KUMARI JI
SADAR
Comment by मनोज अहसास on January 19, 2017 at 9:04am
Bahut bahut aabhar aadarniya RAJESH KUMARI JI
SADAR
Comment by मनोज अहसास on January 19, 2017 at 9:04am
Bahut bahut aabhar aadarniya RAJESH KUMARI JI
SADAR

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Comment by rajesh kumari on January 18, 2017 at 1:35pm

वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह आद० मनोज कुमार अहसास जी बहुत सुंदर जन्म लिखी है कई बार पढ़ चुकी हूँ 

आद० समर भाई जी की इस्स्लाह के अनुसार दो शब्दों को एडिट कर दें समां को वजूद और मैखार को मयख्वार कर दें 

दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद शुभकामनाएँ 

Comment by मनोज अहसास on December 26, 2016 at 8:55pm
जी सर
बेशक आपके सामने आ जाने पर चीज़ संवर जाती है
शुक्रिया
सादर
Comment by Samar kabeer on December 26, 2016 at 8:51pm
"समा" का अर्थ होता है "आसमान"आपने जो अर्थ बताया है वो शब्द है "समाँ"अगर आप 'समाँ'की जगह "वजूद"शब्द रखेंगे तो आपकी ये मुश्किल आसान हो सकती है,भाव भी नहीं बदलेगा ।
Comment by मनोज अहसास on December 26, 2016 at 8:31pm
बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय कबीर साहब
समा का अर्थ
वक़्त का एक भाग
या
नज़ारा
लिया है वैसे मैं ठीक से बता भी नहीं पा रहा
थोड़ा आप ही बता दें
बाकि सुझाव सर माथे
सादर नमन
Comment by Samar kabeer on December 26, 2016 at 2:20pm
जनाब मनोज कुमार अहसास साहिब आदाब,उम्दा नज़्म हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
पांचवें मिसरे में 'समा'का क्या अर्थ लिया है आपने ?
आठवां मिसरा यूँ कर सजते हैं:-
'कम क्यों किरदार मिरा तेरी कहानी में रहा "
आख़री मिसरे में सही शब्द है "मयख़्वार",देखियेगा ।
Comment by मनोज अहसास on December 26, 2016 at 6:36am
बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी
कोई सुझाव मिल जाता तो बहुत अच्छा रहता
सादर
Comment by मनोज अहसास on December 26, 2016 at 6:26am
बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय आशीष यादव जी
सादर

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