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ग़ज़ल(तुम सदा मुस्कराना नये साल में )

ग़ज़ल(तुम सदा मुस्कराना नये साल में )
-----------------------------------------------------
(फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन)

क़ौले उलफत निभाना नये साल में |
मुझ को मत भूल जाना नये साल में |

क्यूँ हैं बाहर खड़े घर में आ जाइए
कीजिए मत बहाना नये साल में |

हाथ ही मिल सके अपने बीते बरस
दिल को दिल से मिलाना नये साल में |

इक कॅलंडर नया घर की दीवार पर
है ज़रूरी लगाना नये साल में |

सिर्फ़ गमगीन आशिक़ की ख्वाहिश है यह
तुम सदा मुस्कराना नये साल में |

फिर से हो जाए या रब दुआ है मेरी
उनके घर आना जाना नये साल में |

अब तो तस्दीक़ हद हो चुकी ज़ुल्म की
तुम क़लम को उठाना नये साल में |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 4, 2017 at 8:42pm

मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया --
आपको भी नया साल बहुत बहुत मुबारक हो --


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:08pm

आदरनीय तस्दीक भाई , आपको नया साल मुबारक हो .....  नये साल पर अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 3, 2017 at 8:32pm

मुहतरम जनाब समर कबीर    साहिब आदाब  , कीमती जानकारी देने के लिए आप  का बहुत बहुत शुक्रिया,महरबानी  --

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 3, 2017 at 8:29pm

मुहतरम जनाब  विजय    साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया --

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 3, 2017 at 8:27pm

मुहतरम जनाब  मिथिलेश   साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---

Comment by Samar kabeer on January 3, 2017 at 3:08pm
जनाब तस्दीक़ साहिब "क़ोल"शब्द में इज़ाफ़त क्यों नहीं लगती ये बात समझने के लिये ज़बान दानी का इल्म की ज़रूरत होती है,ग्रामर सीखना होती है ।
मैं समझाने की कोशिश करता हूँ,फ़ारसी और उर्दू भाषा के शब्दों में इज़ाफ़त लगाई जाती है,लेकिन अरबी और हिन्दी भाषा के शब्दों में इज़ाफ़त का इस्तेमाल ममनू'अ है,"फूल"शब्द में देखिये 'फूल-ए-गुलाब'कितना अजीब लगता है,इसी तरह "क़ोल"शब्द अरबी भाषा का है इसलिये इसमें इज़ाफ़त नहीं लगेगी,इसी तरह "मौत"शब्द भी अरबी भाषा का है इसलिये कहीं भी इस शब्द में इज़ाफ़त नहीं मिलेगी,और अगर मिलती हो तो ज़रूर मंच से साझा कीजिये,मैंने जो इतनी बातें साझा की हैं वो मेरे प्यारे मंच के लिये की हैं,अन्यथा मेरे पास इतना समय कहाँ, और एक बात ध्यान में रखिये की मैं जो भी लिखता हूँ हवा में तीर चलाने के लिये नहीं लिखता,पुरे वसूक़ से लिखता हूँ,और लिखते समय आप मेरी नज़रों में उतना नहीं होते,मंच के वो सदस्य होते हैं जो कुछ न कुछ सीखने के लिये हमेशा तैयार रहते हैं,कृपया मेरी बातों को अन्यथा न लें ।
Comment by vijay nikore on January 3, 2017 at 11:47am

नया साल आपको मुबारक हो। बहुत दिलकश गज़ल लिखी है, आदरणीय तस्दीक जी।


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 12:37am

आदरणीय तस्दीक जी, नए साल पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 2, 2017 at 10:26pm

मुहतरम जनाब आशुतोष साहिब, , ग़ज़ल में गहराई शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 2, 2017 at 10:25pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिबआदाब , , ग़ज़ल में गहराई शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
लफ्ज़'' क़ब्ल'' और'' बाद'' के साथ अज़ का इस्तेमाल तो समझ में आया लेकिन लफ्ज़ '' क़ौल '' के साथ इज़ाफ़त नहीं हो सकती यह समझ
में नहीं आया -----मश्वरे का बहुत बहुत शुक्रिया ----

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