ग़ज़ल(तुम सदा मुस्कराना नये साल में )
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(फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन)
क़ौले उलफत निभाना नये साल में |
मुझ को मत भूल जाना नये साल में |
क्यूँ हैं बाहर खड़े घर में आ जाइए
कीजिए मत बहाना नये साल में |
हाथ ही मिल सके अपने बीते बरस
दिल को दिल से मिलाना नये साल में |
इक कॅलंडर नया घर की दीवार पर
है ज़रूरी लगाना नये साल में |
सिर्फ़ गमगीन आशिक़ की ख्वाहिश है यह
तुम सदा मुस्कराना नये साल में |
फिर से हो जाए या रब दुआ है मेरी
उनके घर आना जाना नये साल में |
अब तो तस्दीक़ हद हो चुकी ज़ुल्म की
तुम क़लम को उठाना नये साल में |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया --
आपको भी नया साल बहुत बहुत मुबारक हो --
आदरनीय तस्दीक भाई , आपको नया साल मुबारक हो ..... नये साल पर अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ ।
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , कीमती जानकारी देने के लिए आप का बहुत बहुत शुक्रिया,महरबानी --
मुहतरम जनाब विजय साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया --
मुहतरम जनाब मिथिलेश साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---
नया साल आपको मुबारक हो। बहुत दिलकश गज़ल लिखी है, आदरणीय तस्दीक जी।
आदरणीय तस्दीक जी, नए साल पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर
मुहतरम जनाब आशुतोष साहिब, , ग़ज़ल में गहराई शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिबआदाब , , ग़ज़ल में गहराई शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
लफ्ज़'' क़ब्ल'' और'' बाद'' के साथ अज़ का इस्तेमाल तो समझ में आया लेकिन लफ्ज़ '' क़ौल '' के साथ इज़ाफ़त नहीं हो सकती यह समझ
में नहीं आया -----मश्वरे का बहुत बहुत शुक्रिया ----
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