ग़ज़ल (दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा )
-----------------------------------------------------
फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन
दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा |
इक सितम गार से दिल लगाना पड़ा |
चश्मे नम से न खुल जाए राज़े वफ़ा
सोच कर यह हमें मुस्कराना पड़ा |
प्यार की इक नज़र की ही उम्मीद में
उम्र भर संग दिल से निभाना पड़ा |
दर्स ज़ालिम ले अंज़ामे फिरओन से
ज़ालिमों को भी दुनिया से जाना पड़ा |
सिर्फ़ उस शोख की दोस्ती के लिए
सारी दुनिया को दुश्मन बनाना पड़ा |
दिल की हर बात जब लब पे आई नहीं
जाम पर जाम उसको पिलाना पड़ा |
साथ अपने न तस्दीक़ जब दे सके
हाथ गैरों से हम को मिलाना पड़ा |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मुहतरम जनाब आशुतोष साहिब , ग़ज़ल में गहराईसे शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
''दर्स ज़ालिम ले अंजामे फ़िरऔन से '' का मतलब है '' ऐ जालिम, फ़िरऔन के अंजाम से सबक़ ले '' फ़िरऔन एक ज़ालिम बादशाह
हुआ है जो खुद को खुदा कहता था जो नहीं मानते थे उनपर ज़ुल्म करता था ----
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिबआदाब , , ग़ज़ल में गहराईसे शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
कहते हैं अगर किसी शराबी से सच उगलवाना हो तो उसे शराब पिलाना शुरू कर दो , यही ख़याल शेर में लिया है \ जहाँ तक जाम पर जाम
के बहुवचन का सवाल है , शेर में एक शख्स का ज़िक्र है इसलिए मेरे ख़याल से दोनों तरह से लेने में कोई खराबी नहीं लगती ----सादर
मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार साहिब, , ग़ज़ल में गहराई शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online