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ग़ज़ल (दिल ने धड़कन उधार ले ली है)

2 1 2 2  1 2 1 2   2 2/1 1 2 /2 2 1/1 1 2 1

दिल ने धड़कन उधार ले ली है

कितनी मोटी पगार ले ली है

ख़ूबसूरत लगी तो हमने भी

इक उदासी उधार ले ली है

फिर हवाओं से एक ताइर ने

दुश्मनी बार-बार ले ली है

हमने सुनसान राह में यादों की

इक रिदा ख़ुशगवार ले ली है

हँस-हँसा कर ज़रा संवर जाओ

आँसुओं से निखार ले ली है

 

मौलिक और अप्रकाशित

...दीपक कुमार

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2017 at 9:29am

आदरणीय दीपक भाई , अच्छी गज़ल कुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें । आ. समर भाई जी की इस्लाह आपको मिल ही चुकी है , ख्याल  कीजियेगा ।

Comment by दीपक कुमार on January 17, 2017 at 10:12am

आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी आपका बेहद शुक्रगुजार हूँ । बहुत-बहुत धन्यवाद !

Comment by दीपक कुमार on January 17, 2017 at 10:10am

आदरणीय समर कबीर साहब आदाब ! आपके सुझावों के प्रति आपका आभार व्यक्त करता हूँ । यही सुझाव प्राप्त करने के उद्देश्य से तो ये ग़ज़ल पोस्ट की थी मैंने । बहुत – बहुत आभार ! 

Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 11:33pm
जनाब दीपक कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

"हमने सुनसान राह में यादों की
इक रिदा ख़ुशगवार ले ली है"

इस शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं है,'राह'शब्द को "रह"कर लें ,और दूसरी बात ,सानी मिसरे में 'रिदा' के साथ 'ख़ुशगवार' शब्द मुनासिब नहीं है,"ख़ुशबूदार" होना चाहिए ।
आख़री शैर में 'निखार' पुल्लिंग शब्द है,इसलिये रदीफ़ के साथ नहीं चल पाएगा ,कोई दूसरा क़ाफ़िया रखें ।
Comment by Mohammed Arif on January 16, 2017 at 10:40pm
आदरणीय दीपक कुमारजी, आदाब ! अच्छी ग़ज़ल दिली मुबारक़बाद क़ुबूल करें ।

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