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नया नग्मा कोई गाओ
पुराने ग़म चले आओ
तुम्हें उड़ना सिखा दूँगा
मिरे पिंजड़े में आ जाओ
अकेलापन अगर अखड़े
उदासी को बुला लाओ
अरे भँवरे, अरी चिड़िया
ग़ज़ल कोई सुना जाओ
शजर बोला परिंदे से
मुहाजिर लौट भी आओ
हमारा दिल तुम्हारा घर
कभी आओ, कभी जाओ
मौलिक और अप्रकाशित
...दीपक कुमार
Comment
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत-बहुत शुक्रिया आपका ! आदरणीय समर कबीर जी की बात पर और आपकी बात पर भी मैं गौर करूँगा !
अखड़े को अखरे और पिंजड़े को पिंजरे मैं कर लूँगा . आख़िर अमृता प्रीतम जी ने भी तो “पिंजर” ही लिखा है। आभार !
आदरणीय समर कबीर साहब बहुत-बहुत आभार ! आपके सुझाव मेरी रचनाशीलता के क्रम में बहुत काम आएंगे ।
यहाँ पर मुझे एक बात समझ नहीं आ रही है कि “ग़म” एकवचन है तो बदलना क्यूँ पड़ेगा ? और “ग़म” तो एकवचन और बहुवचन दोनों तरह से प्रयोग किए जाते हैं । जैसे “मेरे ग़म मुझ पर हावी हो रहे हैं”, यहाँ ग़म बहुवचन के रूप में प्रयोग हो रहा है। यहाँ मेरे शेर के मिसरे में “पुराने ग़म चले आओ” में क्या ग़म एकवचन और बहुवचन दोनों नहीं माने जा सकते ? अगर ग़म एकवचन मानें तो किसी ख़ास ग़म की बात हो रही हो जैसे किसी ख़ास दोस्त की बात होती है “पुराने दोस्त चले आओ”। सादर !
आदरणीय सुशील सरना जी बहुत – बहुत धन्यवाद आपका !
Sheikh Shahzad Usmani साहब, ममनून हूँ, शुक्रगुजार हूँ आपका ! बहुत – बहुत शुक्रिया !
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