For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत लिखो कोई ऐसा --(गीत)-- मिथिलेश वामनकर

गीत लिखो कोई ऐसा जो निर्धन का दुख-दर्द हरे।

सत्य नहीं क्या कविता में,  

निर्धनता का व्यापार हुआ?

 

जलते खेत, तड़पते कृषकों को बिन देखे बिम्ब गढ़े।

आत्म-मुग्ध होकर बस निशदिन आप चने के पेड़ चढ़े।

जिन श्रमिकों की व्यथा देखकर क्रंदन के नवगीत लिखे।

हाथ बढ़ा कब बने सहायक, या कब उनके साथ दिखे?

इन बातों से श्रमजीवी का

बोलो कब उद्धार हुआ?

 

अपनी रचना के शब्दों को, पीड़ित की आवाज कहा।

स्वयं प्रचारित कर, अपने को धनिकों से नाराज कहा।

जीवन भर उन धनवानों से पुरस्कार, सम्मान लिए ।

निर्धन से उपकार जताकर, अपने तम्बू तान लिए ।

पर-पीड़ा से नाम कमाया,

ये कैसा उपकार हुआ ?

 

बाहर घटित हो रहा जो भी, वो कवि के भी भीतर हो।

ना हो कल्पित जाल शब्द के, सिर्फ समय का उत्तर हो।

रूपक, बिम्ब, प्रतीकों में बस उलझाया है कविता को।

जन-जन प्रिय थी लेकिन छोड़ा क्यों छंदों की सरिता को?

इतने क्लिष्ट चयन से केवल

उलझन का विस्तार हुआ।

 

------------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 953

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 12:00pm

आदरणीय डॉ. विजय शंकर सर, आपको यह गीत पसंद आया, मेरा प्रयास सार्थक हो गया. गीत के कथ्य को विस्तार देती आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 25, 2017 at 10:50am
अपनी रचना के शब्दों को, पीड़ित की आवाज कहा।
स्वयं प्रचारित कर, अपने को धनिकों से नाराज कहा।
बात गहरी और हमारे सन्दर्भ में सही है। निर्धनता एक व्यापार ही है। बचपन से देख सुन रहे हैं , गरीब की मदद कितना बड़ा प्रयोजन है। जबकि वास्तविकता यह है कि गरीबी किसी के लिए संकटकालीन , अल्पकालीन एक आपात स्थिति हो सकती है , पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली व्याधि नहीं हो सकती है। पर यदि है तो निश्चित बहुत बड़ा योजनाबद्ध प्रयास है जो गरीबी को जीवंत बनाये हुए है। यह मदद नहीं एक प्रकार की बाध्यता है कि चलते रहना है तो हमारी बैसाखी लेकर चलो , अपने पैरों पर चलना तो क्या हम तुम्हें खड़ा नहीं होने देंगें। देश में एक विशाल वर्ग ऐसा बनाये रखना जो आपके सस्ते आटे-दाल की बात जोहते जोहते जिंदगी गुजार दे और आपको व्यवस्था के शीर्ष पर बैठाता रहे। गज़ब का कौशल है , कभी इस सामर्थ्य , कौशल का किसी अच्छे काम में इस्तेमाल तो करो फिर देखो इससे कई गुना अच्छा कर ले जाओगे। पर वही तो नहीं कर पाते हो।
बहुत बहुत बधाई इस विलक्षण गंभीर विषय को उठाने और उस पर लिखने के लिए , प्रिय मिथिलेश वामनकर जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 1:08am

आदरणीया प्रतिभा जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 1:07am

आदरणीय आशुतोष जी, आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा पाकर खुश हूँ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 1:07am

आदरणीया नीलम जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 1:06am

आदरणीय जयनित जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 

Comment by pratibha pande on January 24, 2017 at 12:44pm

अपनी रचना के शब्दों को, पीड़ित की आवाज कहा।

स्वयं प्रचारित कर, अपने को धनिकों से नाराज कहा।

जीवन भर उन धनवानों से पुरस्कार, सम्मान लिए ।

निर्धन से उपकार जताकर, अपने तम्बू तान लिए ।

पर-पीड़ा से नाम कमाया,...

ये कैसा उपकार हुआ ?

.बहुत अंदर तक बेध रही हैं ये पंक्तियाँ क्यों कि यह सच्चाई है आज की   बधाई आपको आदरणीय मिथिलेश जी 

 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 20, 2017 at 1:35pm

आदरणीय मिथिलेश जी आपकी यूं तो हर रचना मुझे बेहद पसंद आती है लेकिन वरीयता के क्रम में इस रचना का स्थान बहुत ऊपर है /सरल सहज तरीके से जबदसत सन्देश देती और आत्म चिंतन के लिए बिबश करती इस शानदार गीत पर कोटिश: बधाई सादर 

Comment by Neelam Upadhyaya on January 20, 2017 at 10:30am

आदरणीय मिथिलेश जी, सामाजिक यथार्थ का चित्रण करती बहुत ही सुन्दर रचना की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें.

Comment by जयनित कुमार मेहता on January 20, 2017 at 5:37am
आदरणीय मिथिलेश जी, ग़ज़ल के बाद अब गीत विधा में भी हम आपकी प्रतिभा का लोहा मानने को मजबूर हो गए हैं। :-)
एक से बढ़कर एक प्रासंगिक और प्रवाहपूर्ण गीतों से आप मंच की शोभा बढ़ा रहे हैं। बहुत बहुत बधाइयां आपको।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service