क्या थे कल तुम आज हुए क्या यही बताने आया हूँ |
अंधकार में सोयी तेरी रूह जगाने आया हूँ ||
याद अतीत करो अपना जब तुम तूफान उठाते थे |
सुनकर बस इक तेरी आहट अरिदल हिय थर्राते थे ||1||
पत्थर भी साक्षी हैं तेरे, उन सच्चे बलिदानों के |
मातृभूमि पर मरने वाले, बांका वीर जवानों के ||
पूर्वज मुट्ठी भर थे लेकिन लाखों पर वे भारी थे |
पलभर में दुश्मन नष्ट किये जो बने महामारी थे ||2||
इसी धरा पर कोई बाला अग्नि चिता पर लेटी थी |
वक़्त पड़ा तब शीश कटाने निकली कोई बेटी थी ||
घुट्टी तुम्हें पिलाई जाती, नित अतीत के बातों की |
फिर भी निद्रा नहीं टूटती! मरे हुए जज्बातों की! ||3||
आज हुआ क्या घबराते क्यों? अब दुष्ट आततायी से |
शूर-वीर तुम भी जन्मे हो! वीर प्रसूता माई से!
जुल्म सितम सहने की तुमने ऐसी आदत क्यों डाली?
जीते सभी लाभ में अपने नीयत सबकी है काली ||4||
देख सदा हित अपना अपना, आपस में बँट जाते हो|
क्यों कुत्तों की भाँति भला दर-दर की ठोकर खाते हो?
भाषा की तिकड़मबाजी से, कुछ ने तुम्हें फँसाया है |
पाखण्डों में उलझे तुम, क्यों झूठ-साँच अपनाया है? ||5||
क्यों अपना इतिहास भूल दूजे का गाना गाते हो?
जो डाले दो रोटी तुमको, उसके क्यों हो जाते हो?
यही रहा यदि हाल तुम्हारा मुँह किसको दिखलाओगे?
औरों का शासन होगा तुम दास यहाँ कहलाओगे? ||6||
यूँ अपना इतिहास न भूलो वरना बस पछताओगे |
सत्ता शासन के वारिश तुम पिछलग्गू बन जाओगे ||
लहूँ निरर्थक है वह जो सम्मान न थोड़ा दे पाया |
जीवन बेमतलब है उसका जो केवल खाने आया ||7||
एक कसम खाओ मित्रों मिल वहशी भूत उतारेंगे|
ढोंगी हो या हो पाखंडी चौराहे पर मारेंगे ||
सर पर कफ़न बाँध लो अब तुम देखो! जय की बारी है|
आगे बढ़ बलिदान करो तुम सारी धरा तुम्हारी है ||8||
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरनीय सुरेन्द्र नाथ भाई , ओजस्वी, देश भक्ति से ओत प्रोत इस गीत रचना के लिये दिल से बधाइयाँ आपको ।
जज़्बात स्व्यँ बहुत वचन है जज़्बा का -- जज़्बातों सही नही है ।
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