1212 1122 1212 22
ये न्यूज़ वाले कहानी को मोड़ देते हैं
यहाँ की बात वहाँ ला के जोड़ देते हैं
ख़राब आज को करते नहीं हैं उसके लिए
जो कल की बात है कल पे ही छोड़ देते हैं
बड़े ही प्यार से माँ बाप पालते जिनको
उमीद उनकी वो बच्चे ही तोड़ देते हैं
दिखाते फिरते नहीं ज़ख़्म अपने दुनिया को
हम अपना दर्द ग़ज़ल में निचोड़ देते हैं
जो आइना तुझे घूरे अधिक समय तक तो
उस आइने की भी आँखों को फोड़ देते हैं
उठा के …
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on April 4, 2023 at 1:56pm — 4 Comments
माना नज़र है तेरी ख़रीदार की तरह
लेकिन न लूट तू मुझे बाज़ार की तरह
रिश्ते बिगड़ते देर तनिक भी नहीं लगे
गर आपकी ज़ुबान हो तलवार की तरह
वो तो चुनाव जीत के परधान बन गया
जो घूमता था गाँव में बेकार की तरह
वादा तो कीजिये नहीं और कर दिए अगर
वादा खिलाफी हो नहीं सरकार की तरह
देते हैं भाव नेता चुनावों के वक़्त पर
और फेंक देते बाद में अख़बार की तरह
शाइर …
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on March 21, 2023 at 7:49pm — 6 Comments
भाल जिसका है हिमालय औ तिरंगा शान है
देश प्यारा वह हमारा नाम हिन्दुस्तान है
हर सुबह जिसकी सुहानी सुरमई औ' शाम है
स्वर्ग सा यह देश अपना मोक्ष का यह धाम है
खेत गिरि मैदान जंगल लहकतीं हरियालियाँ
भोर की आहट मिले तो स्वर्ग सी हो वादियाँ।
पूर्व में आसाम मेघालय मिजोरम ख़ास है
साथ में बंगाल सिक्किम का अमर इतिहास है
गन्ध फूलों की बिखरती है हवाओं में वहाँ
गीत गाते खग ख़ुशी के …
Added by नाथ सोनांचली on January 2, 2023 at 7:42am — No Comments
कोशिश है जीवन पाने की
सबकी चाह प्रथम आने की
कई करोड़ों लड़ते लेकिन
कोई - कोई विजयी निकले
शेष कहाँ जा खो जाते हैं, इसका कुछ अनुमान नहीं है
कोई चाहे कुछ भी कह ले, जीवन पथ आसान नहीं है
शाम सुबह या जेठ दुपहरी, भूख मिटाते जीवन बीते
कल जैसा ही कल होगा क्या, इस असमंजस में हम जीते
रेत सरीखे अपने सपने, कब ढह जाए नहीं भरोसा
जीने की उम्मीद लिए सब, बूँद जहर का चेतन पीते
दो रोटी पाने की …
Added by नाथ सोनांचली on June 17, 2022 at 9:59pm — 2 Comments
1
माँ गुरु थी पहली अपनी जिसका तप पावन ज्ञान लिखूँ
छाँव मिली जिस आँचल में उसको सब वेद पुरान लिखूँ
गर्भ पला जिसके तन में उसको अपना भगवान लिखूँ
मात सनेह समान यहाँ कुछ और नहीं उपमान लिखूँ
2
साजन जो परदेश गए करके मकरन्द विहीन कली
अश्रु गिरें दिन रात यहाँ बरसे जस सावन की बदली
बात रही दिल में जितनी दिल ने दिल से दिल में कह ली
हाल हुआ दिल का अपने जस नीर बिना तड़पे मछली
नाथ…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on June 15, 2022 at 7:54am — 4 Comments
तृप्ति भी मिलती नहीं औ द्वंद भी कुछ इस तरह है
सोचना क्या? छोड़ना क्या? कुछ नहीं बस में हमारे
साथ किसके क्या रहा है छोड़कर धरती गगन को
फूल जो भी आज हैं वे छोड़ देंगे कल चमन को
मौत पर होवें दुखी या जन्म पर खुशियाँ मनाएँ
हार से हम हार जाएँ या लड़े औ जीत जाएँ
ज़िन्दगी के राज़ गहरे दूर जितने चाँद तारे
सोचना क्या? छोड़ना क्या? कुछ नहीं बस में हमारे
हर पतन के बाद ही होता जगत उत्थान भी है
शांति की ही गोद में …
Added by नाथ सोनांचली on June 13, 2022 at 11:10am — 6 Comments
बोझ पड़ा सिर पे घर का मन में घनघोर अशांति हुई
यौवन में तन वृद्ध हुआ अरु जर्जर मानस क्लांति हुई
बीत गए सुख चैन भरे दिन जो अब लौट नहीं सकते
बाल सफेद हुए सिर के मुख की सब गायब कांति हुई
जीवन के दिन चार यहाँ इसमें उसमें हम त्रस्त हुए
अर्थ क्षुधा बुझती न कभी धन संचय में बस व्यस्त हुए
वक़्त नहीं मिलता जिसमें हम बैठ कहीं कुछ सोच सकें
बन्धु सखा हित वक़्त नहीं अब यूँ हम शुद्ध गृहस्थ हुए
नाथ सोनांचली
विधान -: भानस ×7…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on June 11, 2022 at 2:30pm — No Comments
1।।
कभी डाँट से तो कभी स्नेह दे के पिता ने किया पूर्ण कल्यान मेरा
पढ़ाया लिखाया सिखाया मुझे जो उसी से हुआ आज उत्थान मेरा
नहीं जो पिता साथ होते कभी तो, लगा यों कि संसार वीरान मेरा
पिता का नहीं नाम जो साथ होता न होता कही आज सम्मान मेरा
2।।
पिता में बसे तीर्थ सारे हमारे उन्हीं में सदा ईश का भान पाया
पिता के बिना जो पड़ी मुश्किलें तो स्वयं को निरामूर्ख नादान पाया
निजी ज़िन्दगी में पिता जी सरीखा रहा दोस्त जो वो न इंसान…
Added by नाथ सोनांचली on June 10, 2022 at 2:30pm — 8 Comments
गहरे तुम ध्यान समाधि लिए अभया अमिताभ गतागत हो
मुनि सोच पुनीत अथाह धरे करते सबका हिय स्वागत हो
मुखमंडल तेज लगे इस भांति कि सत्य विनायक आगत हो
तुम पंकज मध्य सुवासित सम्यक गौतम बुुद्ध तथागत हो।।1
तप से तप धम्म सहिष्णु बने न किसी पर स्थावर क्रुद्ध हुए
जब तर्क अकाट्य सुना जग ने सब ढोंग प्रपंच निरूद्ध हुए
अरु हिंसक वृत्ति रुकी जग की जन कर्म विचार विशुद्ध हुए
अपना सब दीप स्वयं बनिये कह गौतम से मुनि बुद्ध हुए।।2
नाथ…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on May 30, 2022 at 6:00am — 2 Comments
तुम फूल कली तुम चन्द्र मुखी तुम स्वर्ग परी चित चंचल हो
तुम लौकिक केवल देह नहीं मकरन्द भरा नव कोंपल हो
तुम भ्रांति नहीं अनुभूति प्रिये तुम पुष्प कली सम कोमल हो
तुम पादप पल्लव हार प्रिये तुम गंग नदी सम निर्मल हो।।1
तुम निश्छल प्रेम भरी गगरी ऋतु पावस सी मनभावन हो
तुम हो इक नाम समर्पण का तुम रूप प्रसून सुहावन हो
तुम प्राणप्रिया शुचिता वनिता तुम ही रखती घर पावन हो
तुम प्रान सुधा घनश्याम घटा उर में बरसे वह सावन…
Added by नाथ सोनांचली on May 25, 2022 at 12:39pm — 6 Comments
छोड़ बसेरा बचपन का अब, दूजे घर को जाना है
रीत बनी है इस जग की जो, उसको मुझे निभाना है
लेकिन मन में प्रश्न बहुत हैं, उनमें पापा खोने दो
पल भर में मैं हुई पराई, मुझको खुल कर रोने दो
घर आँगन की मधुर सुवासित, पापा मैं कस्तूरी थी
जन्मी थी तो बोले थे तुम, बिटिया बहुत जरूरी थी
कल तक तेरी ही गोदी में, पापा मैं तो सोती थी
तुम्हे न पाती थी जब घर में, मार दहाड़े रोती थी
भूल गए क्यों सारी बातें, मुझसे क्यों मुँह…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on October 13, 2021 at 10:52am — 9 Comments
221 2121 1221 212
था नाम दिल पे नक़्श मिटाया नहीं गया
मुझसे तुम्हारा प्यार भुलाया नहीं गया
कल को सँवारने में गई बीत ज़िन्दगी
जो सामने था लुत्फ़ उठाया नहीं गया
कोशिश बहुत की, राज़-ए- मुहब्बत अयाँ न हो
अल्फ़ाज़ से मगर ये छिपाया नहीं गया
बीवी बहन बहू न मिलेगी कोई तुम्हें
बेटी को कोख़ में जो बचाया नहीं गया
मंदिर में जाके भोज …
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on March 30, 2021 at 5:30pm — 3 Comments
रहते यारों संग थे, मस्ती में हम डूब
बचपन में होता रहा, गप्प सड़ाका खूब
गप्प सड़ाका खूब, नहीं चिंता थी कल की
आह! मगर वह नाथ' ज़िन्दगी थी दो पल की
आया अब यह दौर, जवानी जिसको कहते
अपने में ही मस्त, जहाँ हम सब हैं रहते
ऑफिस में गप मारना, बहुत बुरी है बात
देख लिया यदि बॉस ने, बिगड़ेंगे हालात
बिगड़ेंगे हालात, मिले टेंशन पर टेंशन
घट जाए सम्मान, कटे वेतन औ' पेंशन
भभके उल्टी आग, बन्द थी जो माचिस में
हर…
Added by नाथ सोनांचली on March 15, 2021 at 5:16am — 4 Comments
किसे सुनाऊँ अपनी पीड़ा, किसको मैं समझाऊँ
सब पत्थर के देव यहाँ हैं, किस से सर टकराऊँ
युग कोई भी यहाँ रहा हो, सबने हमें ठगा है
माँ ममता की मूरत कहकर, देता रहा दगा है
कल जैसी ही आज हमारी, वैसी भाग्य निशानी
जुड़ी उसी से सुन लो यारा, अपनी एक कहानी
शादी के दस साल हुए थे, पर ना गोद भरी थी
बाँझ न रह जाऊँ जीवन भर, इससे बहुत डरी थी
देख किसी बच्चे को सोचूँ, झट से गले लगा लूँ
छाती का मैं दूध पिलाकर, अपनी …
Added by नाथ सोनांचली on March 7, 2021 at 8:14pm — 6 Comments
अरकान- 2122 1122 1122 112/22
तेरे खाने के लिये मुफ्त का माल अच्छा है
इसलिये लगता चुनावों का वबाल अच्छा है
ये अलग बात कि सूरत न भली हो लेकिन
कुछ न कुछ हर कोई करता ही कमाल अच्छा है
हम जवाबों से परखते हैं रज़ामन्दी को
मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा है
हद से बाहर तो हर इक चीज़ बुरी लगती है
हद में रह कर जो किया जाए धमाल अच्छा है
अस्मतें रोज़ ही माँ बहनों की बिकती हैं…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 5, 2021 at 12:57pm — 5 Comments
विचार में प्रवाह हो स्वभाव में उजास हो
नवीन वर्ष में नवीन गीत रंग रास हो
प्रभात धूप हो खिली समीर मस्त हो बहे
अनन्त हर्ष को लिए सुवास भाव भी रहे
कपाट बंद खोल के धरे नवीन ज्ञान को
समर्थ अर्थ में रखे सदैव स्वाभिमान को
रहे कहीं न दीनता सदा यही प्रयास हो
नवीन वर्ष में नवीन गीत रंग रास हो।।१
विकार काम क्रोध मोह लोभ क्षोभ त्याग दे
कुमार्ग पे चले नहीं विनाश का न राग दें
कहीं दिखे अधर्म तो अधर्म देह चीर दें
समाज …
Added by नाथ सोनांचली on December 30, 2020 at 2:54pm — 10 Comments
आज पुनः जब मना रहे हम, वर्षगाँठ आज़ादी की
आओ थोड़ी चर्चा करलें, जनगण मन आबादी की
जिन पर कविता गीत लिखूँ तो, झर-झर आँसू आते हैं
रोम-रोम में सिहरन होती, भाव सभी मर जाते हैं।।1
ऐसे भी हैं यहाँ कई जो, घर को सर पर ढोते हैं
घोर अँधेरा फुटपाथों पर, बिना बिछौना सोते हैं
गर्मी में तन झुलसे उनका, सर्दी हाड़ कँपाती है
तब जश्ने आज़ादी अपनी, उनको ख़ूब चिढ़ाती है।।2
भूखा प्यासा उलझा बचपन, भटक रहा अँधियारों में
फूटी क़िस्मत खोज रहा वह, कूड़े के गलियारों…
Added by नाथ सोनांचली on August 15, 2020 at 12:07pm — 8 Comments
बह्र- 2122 1122 1122 112/22
कोख में आने से साँसों के ठहर जाने तक
ज़िन्दगी में सकूँ मिलता नहीं मर जाने तक
मुफ़लिसी नेक दिली और ज़माने का दर्द
ये सभी सिर्फ़ सियासत में उतर जाने तक
शादी लड्डू ही नहीं एक बला है इसका
होता अहसास नहीं पंख कतर जाने तक
यार बरसात किसे अच्छी नहीं लगती मगर
खेत खलियान नदी ताल के भर जाने तक
हर तरफ़ शह्र में ख़ूँख़ार दरिन्दे घूमें
बेटियाँ ख़ौफ़ज़दा लौट के घर जाने…
Added by नाथ सोनांचली on August 4, 2020 at 6:11am — 10 Comments
बह्र- 2122 2122 2122 212
मीडिया की फ़ौज लेकर रह्म कब खाने गए
झोपड़ी में सिर्फ़ वे दिल अपने बहलाने गए
रेडियो से ही हुआ करती थी सुब्ह-ओ-शाम जब
दौर वह यारो गया और उसके दीवाने गए
नीम पीपल छाँछ लस्सी बाजरे की रोटियाँ
ज़िन्दगी से गाँव की ये सारे अफ़साने गए
जोड़ते थे जो दिलों को अपनी माटी से यहाँ
फ़ाग चैता और कजरी के वे सब गाने गए
पूछने पर लाल के माँ ने कहा पापा तेरे
ओढ़कर प्यारा तिरंगा चाँद को लाने…
Added by नाथ सोनांचली on July 30, 2020 at 11:16am — 13 Comments
2122 1122 1122 22
हाँ में हाँ लोग जो होते हैं मिलाने वाले
हैं पस-ए पुश्त मियाँ ज़ुल्म वो ढाने वाले
अपने चहरे के उन्हें दाग़ नज़र आ जाते
देखते ख़ुद को जो आईना दिखाने वाले
पाप धुलते नहीं इस तरह बता दो उनको
हैं जो कुछ लोग ये गंगा में नहाने वाले
हो क़फ़स लाख वो फ़ौलाद का लेकिन यारो
रोक सकता नहीं उनको जो हैं जाने वाले
आपसे वादा निभाएँगे भला वो कैसे
वादा ख़ुद का न कभी ख़ुद से निभाने वाले
आप…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on July 18, 2020 at 4:30pm — 14 Comments
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