कोशिश है जीवन पाने की
सबकी चाह प्रथम आने की
कई करोड़ों लड़ते लेकिन
कोई - कोई विजयी निकले
शेष कहाँ जा खो जाते हैं, इसका कुछ अनुमान नहीं है
कोई चाहे कुछ भी कह ले, जीवन पथ आसान नहीं है
शाम सुबह या जेठ दुपहरी, भूख मिटाते जीवन बीते
कल जैसा ही कल होगा क्या, इस असमंजस में हम जीते
रेत सरीखे अपने सपने, कब ढह जाए नहीं भरोसा
जीने की उम्मीद लिए सब, बूँद जहर का चेतन पीते
दो रोटी पाने की ख़ातिर, जीवन सभी खपाते लेकिन
जीवन ताश सरीखा जिसके, अगले पल का भान नहीं है
कोई चाहे कुछ भी कह ले, जीवन पथ आसान नहीं है
काम खोजने गए सुबह पर, नहीं भरोसा काम मिलेगा
देव भाग्य से काम मिला तो, नहीं जानते दाम मिलेगा
स्वांसों पर उनके पहरा है, भाग्य कहीं जाकर ठहरा है
उनका तन पूरा गिरवी है, उनको क्या आराम मिलेगा
दुख से उनकी रिश्तेदारी, घर लगता शमशान सरीखा
घर पर जाके उनके देखो, जीने का सामान नहीं है
कोई चाहे कुछ भी कह ले, जीवन पथ आसान नहीं है
प्रेम-सुधा का चिर अभिलाषित, खोजे केवल फूल हमेशा
रहे उपेक्षित प्रतिफल में वह, उसको चुभते शूल हमेशा
जीवन वन में कभी - कभी तो, आती मस्त बहारें लेकिन
वे भी होतीं मित्र कहाँ कब, उसके हित अनुकूल हमेशा
समय चक्र की अपनी गति है, इसमें उलझा चेतन सारा
कहने को अपना जीवन यह, अपने हाथ कमान नहीं है
कोई चाहे कुछ भी कह ले, जीवन पथ आसान नहीं है
नाथ सोनांचली
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 चेतन प्रकाश जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकी गरिमामयी उपस्थिति और उत्साह बढ़ाती आत्मिक प्रतिक्रिया का हृदयतल से आभार।
नमस्कार, भाई, नाथ सोनांचली, जीवन की अनिश्चितता और परिस्तिथियों के सापेक्ष मानव के
असहाय होते भाग्य पर उसकी निर्भरता की विषय- वस्तु लेकर सार्थक गीत की सृष्टि की आपने, बधाई !
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