छोड़ बसेरा बचपन का अब, दूजे घर को जाना है
रीत बनी है इस जग की जो, उसको मुझे निभाना है
लेकिन मन में प्रश्न बहुत हैं, उनमें पापा खोने दो
पल भर में मैं हुई पराई, मुझको खुल कर रोने दो
घर आँगन की मधुर सुवासित, पापा मैं कस्तूरी थी
जन्मी थी तो बोले थे तुम, बिटिया बहुत जरूरी थी
कल तक तेरी ही गोदी में, पापा मैं तो सोती थी
तुम्हे न पाती थी जब घर में, मार दहाड़े रोती थी
भूल गए क्यों सारी बातें, मुझसे क्यों मुँह मोड़ लिया
पूछ रही हूँ पापा बोलो, क्या मुझको है छोड़ दिया
बचपन वाले मौज भरे दिन, अब न लौट के आएंगे
याद करूँगी जब-जब तुमको, आँसू गिरते जायेंगे
चोट लगी जब कभी मुझे तो, पापा तुम भी रोते थे
चाहे जितना थक कर आते, मुझे सुलाकर सोते थे
अधरों पर मुस्कान दिलाती, मैं जादू की पुड़िया थी
पापा तेरी सोन चिरइया, नन्हीं मुन्नी गुड़िया थी
अब इस घर में पापा मेरा, क्या है कोई स्थान नहीं
मैं भी तेरी अपनी ही हूँ, क्या इसका भी भान नहीं
मैं कातर सी हुई मगर क्यों, तुमको आता रोष नहीं
मैं लड़की हूँ इसमें पापा, मेरा कोई दोष नहीं
मेरे हित तुमने सारा ये, निर्णय कैसा कर डाला
चाहे जितना रोऊँ पर क्यों, फ़र्क नहीं पड़ने वाला
बोझ नहीं थी यदि पापा मैं, क्यों तुम मुझसे दूर हुए
दूर भेजने को आख़िर क्यों, पापा तुम मजबूर हुए
भेज रहे हो उस घर में तुम, जिससे हो अंजान बहुत
भगा रहे हो घर से अपने, देकर तुम सामान बहुत
बिन बोले ही मेरी ख़्वाहिश, कौन समझ अब पायेगा
मैं रोऊँगी कौन वहाँ फिर, मुझको शांत कराएगा
मैं ढूँढूँगी तुमको पापा, सारे रस्म - रिवाजों में
ढूँढूँगी तेरी आवाजें, मैं सबकी आवाजों में
मुझे मनाने - समझाने को, तुम होंगे अब पास नहीं
मुझे छिपायेगी आँचल में, माँ से भी वह आस नहीं
अब होने जा रही विदा मैं, सब कुछ जैसे टूट रहा
सुबक रहा है भैया देखो, साथ हमारा छूट रहा
मेरे बिन माँ रोयेगी तो, उसे मनाना पापा तुम
अगर बिना खाये सोए तो, उसे खिलाना पापा तुम
भूल अगर माँ से हो जाये, उसको डांट नहीं देना
बिन भूले ही पापा हर दिन, दवा वक़्त पर खा लेना
मेरा क्या मैं तो वह चिड़िया, जिसका यहाँ बसेरा था
लिखा भाग्य में था जितने दिन, उतने दिन ही डेरा था
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सोनंचली जी, भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई। वास्तव मे हर लड़की की विदाई के समय ऐसे ही भाव उठते हैं।
वाह आदरणीय क्या ही शानदार भावपूर्ण रचना है...बधाई
आद0 समर कबीर साहब आपको सादर प्रणाम करता हूँ।आपकी रचना पर उपस्थिति ही मेरे लिए आशीर्वाद से कम नहीं है। आपकी बातों को गम्भीरता से लेते हुए रचना को पुनः देखता हूँ। सादर
जनाब नाथ सोनांच्ली जी आदाब , बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I
`कल तक तेरी ही गोदी में, पापा मैं तो सोती थी
तुम्हे न पाती थी जब घर में, मार दहाड़े रोती थी`
इसके पहले मिसरे में `तेरी` और दूसरे मिसरे में `तुम्हारी ?---`तुम्हे`--"तुम्हें"--`दहाड़े`--"दहाड़ें "
`मैं ढूँढूँगी तुमको पापा, सारे रस्म - रिवाजों में
ढूँढूँगी तेरी आवाजें, मैं सबकी आवाजों में`---इन मिसरों में भी `तुमको ` और `तेरी`?
कहीं पापा को तू से और कहीं तुम से सम्बोधित किया गया है ये बात रचना को कमज़ोर करती है ,दूसरी बात ये कि कुछ मिसरों में वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं है, इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है I
आद0 नीलेश भाई जी
सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और प्रशंसा हेतु बहुत बहुत आभार आपका
आ. सुरेन्द्र भाई,
भावपूर्ण रचना के लिए बधाई
आद0 अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब सादर अभिवादन।
मेरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साह बढ़ाती प्रतिक्रिया से गदगद हूँ। बहुत बहुत आभार आपका
जनाब नाथ सोनांचली जी आदाब, मार्मिक रचना के माध्यम से विदाई के समय बेटी के उद्गार बख़ूबी पेश किए हैं आपने, बधाई स्वीकार करें। सादर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online