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था नाम दिल पे नक़्श मिटाया नहीं गया
मुझसे तुम्हारा प्यार भुलाया नहीं गया
कल को सँवारने में गई बीत ज़िन्दगी
जो सामने था लुत्फ़ उठाया नहीं गया
कोशिश बहुत की, राज़-ए- मुहब्बत अयाँ न हो
अल्फ़ाज़ से मगर ये छिपाया नहीं गया
बीवी बहन बहू न मिलेगी कोई तुम्हें
बेटी को कोख़ में जो बचाया नहीं गया
मंदिर में जाके भोज कराते हो किस लिए
माँ बाप को तो तुमसे खिलाया नहीं गया
पलको से रोकने की हुईं कोशिशें मगर
आसूँ का बोझ दिल से उठाया नहीं गया
चहरे को रोज़ अपने बदलता रहूँ जनाब
मुझको हुनर यही तो सिखाया नहीं गया
आती थीं जिस तरफ़ से नज़र ख़ूबियाँ मेरी
क्यों उस तरफ़ से मुझको दिखाया नहीं गया
मुश्किल कहाँ थे वादे मुहब्बत के 'नाथ' पर
तुमसे हमारा साथ निभाया नहीं गया
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब नाथ सोनांचली जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
कुछ टंकण त्रुटियाँ सुधार लें ।
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आदरणीय नाथ जी
जनाब नाथ सोनांचली जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। आठवाँ शे'र और मक़्ता ख़ास पसंद आया है। कुछ टंकण त्रुटियों की ओर आपका ध्यानाकर्षण चाहता हूँ- 'कोख़' से नुक़्ता हटा लीजिए, 'पलको' को 'पलकों', 'आसूँ' को 'आँसू' कर लें। सादर।
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