रहते यारों संग थे, मस्ती में हम डूब
बचपन में होता रहा, गप्प सड़ाका खूब
गप्प सड़ाका खूब, नहीं चिंता थी कल की
आह! मगर वह नाथ' ज़िन्दगी थी दो पल की
आया अब यह दौर, जवानी जिसको कहते
अपने में ही मस्त, जहाँ हम सब हैं रहते
ऑफिस में गप मारना, बहुत बुरी है बात
देख लिया यदि बॉस ने, बिगड़ेंगे हालात
बिगड़ेंगे हालात, मिले टेंशन पर टेंशन
घट जाए सम्मान, कटे वेतन औ' पेंशन
भभके उल्टी आग, बन्द थी जो माचिस में
हर पल रहें सतर्क, रहें जब भी ऑफिस में
चुनकर संसद में गए, चतुर गिद्ध औ' बाज
नोटों का व्यापार कर, पहने सबने ताज
पहने सबने ताज, गप्प हर - पल सब मारें
करके केवल शोर, काम कल पर वे टारें
करते वे जो काज, शर्म आती है सुनकर
यह अपना दुर्भाग्य, गए जो ऐसे चुनकर
गप- गप-गप करना सदा, देता काम बिगाड़
बिगड़े पर फिर ना बने, कितना करें जुगाड़
कितना करें जुगाड़, नहीं कुछ मन को भाये
उतावलेपन की आदत श्रम और कराये
फिर बन के नासूर, चित्त पर टपके टप-टप
फल होवे अनुरूप, नहीं अब करना गप-गप
बोगी हो जब ट्रेन की, बैठें हों जन चार
गप्प मारते - मारते, हो जाती तकरार
हो जाती तकरार, चलें फिर डंडे हॉकी
फूटे मुँह औ नाक, रहे ना कुछ भी बाकी
मिलते गप्पेबाज, बहुत सनकी या रोगी
रहना इनसे दूर, ट्रैन की जब हो बोगी
काला है, वह श्वेत है, वह है रूप कुरूप
दमके उसका तन बदन, जैसे खिलती धूप
जैसे खिलती धूप, यहीं सब बातें कहते
जब भी सँग दो चार, जहाँ गप वाले रहते
निकले अर्थ अनर्थ, मगर रचते मधुशाला
पकड़े गप की जिद्द, श्वेत को कहते काला
सोचें यदि गप हो नहीं, कैसा लगे जहान
बैठे हों सब पास पर, निर्जन औ सुनसान
निर्जन औ सुनसान, फुलाये मुँह हों जैसे
गूँगे सम हालात, कहें तो फिर भी कैसे
आकर इक दिन तंग, बाल सब अपना नोचें
गप बिन नहीं समाज, जरा यह भी तो सोचें
गप की है गाथा बहुत, कितना करूँ बखान
यह है सबकी ज़िन्दगी, यह है सबकी जान
यह है सबकी जान, नहीं अतिशय पर होवे
उसका हो नुकसान, बुद्धि जो अपनी खोवे
समय काल अनुसार, ज़रूरत है यह सबकी
दुनिया में श्रीमान, अकथ है गाथा गप की
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी सादर अभिवादन।
रचना पर आपकी उपस्थिति और बधाई के लिए आभार
आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। रचना डालने के बाद मुझे आपकी उपस्थिति और आशीष का ििइंतजार रहता है। हृदयतल से आभार निवेदित करता हूँ।
आ. भाई नाथ सोनांचली जी, अभिवादन । अच्छी कुंडलियाँ हुई हैं । हार्दिक बधाई ।
जनाब नाथ सोनांचली जी आदाब,अच्छे कुंडलिया छंद लिखे हैं, बधाई स्वीकार कर्रें I
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