For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ कुण्डलियाँँ "गप या गप्प" पर

रहते  यारों   संग   थे,  मस्ती   में   हम  डूब
बचपन  में  होता  रहा,  गप्प   सड़ाका  खूब
गप्प सड़ाका  खूब, नहीं चिंता  थी  कल की
आह! मगर वह नाथ' ज़िन्दगी थी दो पल की
आया अब यह दौर, जवानी  जिसको  कहते
अपने में  ही  मस्त,  जहाँ  हम  सब  हैं  रहते

ऑफिस में गप  मारना, बहुत  बुरी  है  बात
देख लिया  यदि  बॉस  ने,  बिगड़ेंगे  हालात
बिगड़ेंगे   हालात,   मिले   टेंशन  पर  टेंशन
घट  जाए  सम्मान,  कटे  वेतन  औ'  पेंशन
भभके उल्टी  आग, बन्द थी जो माचिस  में
हर पल रहें सतर्क, रहें  जब भी ऑफिस में


चुनकर संसद में  गए, चतुर गिद्ध औ' बाज
नोटों का  व्यापार  कर,  पहने  सबने  ताज
पहने सबने ताज, गप्प हर - पल  सब  मारें
करके केवल शोर, काम  कल  पर  वे  टारें
करते  वे  जो  काज, शर्म  आती है सुनकर
यह अपना दुर्भाग्य,  गए  जो  ऐसे  चुनकर

गप- गप-गप करना सदा, देता काम बिगाड़
बिगड़े पर फिर ना बने, कितना करें जुगाड़
कितना करें जुगाड़, नहीं कुछ मन को भाये
उतावलेपन  की  आदत  श्रम  और   कराये
फिर बन के नासूर, चित्त पर टपके  टप-टप
फल होवे अनुरूप, नहीं अब करना गप-गप

बोगी  हो  जब  ट्रेन की, बैठें  हों  जन  चार
गप्प  मारते  -  मारते,   हो  जाती   तकरार
हो  जाती  तकरार,  चलें  फिर  डंडे  हॉकी
फूटे मुँह औ नाक, रहे ना  कुछ  भी  बाकी
मिलते  गप्पेबाज,  बहुत  सनकी  या  रोगी
रहना  इनसे  दूर,  ट्रैन  की  जब  हो  बोगी

काला है, वह श्वेत  है, वह  है  रूप  कुरूप
दमके उसका तन बदन, जैसे खिलती धूप
जैसे खिलती धूप,  यहीं  सब  बातें  कहते
जब भी सँग दो चार, जहाँ  गप वाले रहते
निकले अर्थ अनर्थ, मगर  रचते  मधुशाला
पकड़े गप की जिद्द, श्वेत को कहते काला

सोचें यदि गप हो  नहीं, कैसा  लगे जहान
बैठे हों सब पास पर, निर्जन  औ सुनसान
निर्जन औ  सुनसान, फुलाये  मुँह  हों जैसे
गूँगे सम  हालात, कहें  तो  फिर  भी  कैसे
आकर इक दिन तंग, बाल सब अपना नोचें
गप बिन नहीं समाज, जरा यह भी तो सोचें

गप की है गाथा बहुत, कितना करूँ बखान
यह है सबकी ज़िन्दगी, यह है  सबकी जान
यह है सबकी जान, नहीं  अतिशय पर होवे
उसका हो नुकसान, बुद्धि  जो अपनी खोवे
समय काल अनुसार, ज़रूरत है यह सबकी
दुनिया में श्रीमान, अकथ  है  गाथा गप की

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 19, 2021 at 3:42pm

आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी सादर अभिवादन।

रचना पर आपकी उपस्थिति और बधाई के लिए आभार

Comment by नाथ सोनांचली on March 19, 2021 at 3:38pm

आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। रचना डालने के बाद मुझे आपकी उपस्थिति और आशीष का ििइंतजार रहता है। हृदयतल से आभार निवेदित करता हूँ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2021 at 7:35am

आ. भाई नाथ सोनांचली जी,  अभिवादन । अच्छी कुंडलियाँ हुई हैं । हार्दिक बधाई । 

Comment by Samar kabeer on March 17, 2021 at 7:23pm

जनाब नाथ सोनांचली जी आदाब,अच्छे कुंडलिया छंद लिखे हैं, बधाई स्वीकार कर्रें I  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service