कलम उठाई है मैंने अब, सोयी रूह जगाने को
जिस मिट्टी में जन्म लिया है, उसका कर्ज चुकाने को
कलमकार का फर्ज निभाऊं, हलके में मत लेना जी
भुजा फड़कने अगर लगे तो, दोष न मुझको देना जी
सन सैतालिस हमसे यारो, कब का पीछे छूटा है
भारत के अरमानों को खुद, अपनो ने ही लूटा है
भूख गरीबी मिटी नही है, दिखती क्यो बेगारी है
झोपड़ियो के अंदर साहब दिखती क्यों लाचारी है
भारत माता की हालत को, देखों तुम अखबारों में
कैद हुआ गणतन्त्र हमारा, आखिर क्यों दीवारों में
गांधी के सपनो का भारत, भूखा बेबस सोता है
दंश बड़ा दुखदायी है यह, दिल पीड़ा से रोता है
कब तक किसी फ़टी चादर को, पूरा कुनबा ओढ़ेगा
कब तक जेठ दुपहरी में भी, बूढ़ा पत्थर तोड़ेगा
कब तक बालक वृन्द यहाँ पर, भूखे प्यासे सोयेंगे
कूड़े करकट के ढेरों में, अपनी किस्मत खोएंगे
लोकतंत्र की पगडंडी पर, जब तक स्वार्थी आएंगे
लूट पाट फिर मची रहेगी, हम केवल पछतायेंगे
कब तक यूँ गंगा धोएगी, नीच अधम के पापो को
कब तक दूध पिलायेंगे हम, अंदर के ही साँपों को
सबसे ज्यादा खतरा यारो, अंदर के गद्दारों से
ऊब चुका है देश हमारा, झूठ मूठ के नारों से
सोने की चिड़िया को यारो, सभी लूट ले जाएंगे
हंस ताकता रह जायेगा, कौवे खाना खाएंगे
याद करो इतिहास जरा तुम, वीरों की कुर्बानी को
आजाद भगत बिस्मिल सुभाष, औ झाँसी की रानी को
धरती अम्बर गूँजा था जब, इन्कलाब के नारों से
अदम्य साहस दिखलाया था, खेले थे अंगारो से
नीव हिला दी अंग्रेजो की, जिसने पहनी थी खादी
नर कंकाल भले था वो पर, लेकर मानी आजादी
वीर जवानों ने कण कण को, बलिदानो से सींचा था
दुश्मन की छाती पे चढ़के, प्राण हलक से खींचा था
कसम तिरंगे की खाते हैं, हम अतीत दुहरायेंगे
वक़्त पड़ा तो शीश कटाकर, बलिदानी हो जाएंगे
गौरवशाली उस अतीत को, खाक नहीं होने देंगे
भारत माँ की छाती पर अब, मूँग नहीं दलने देंगे
(16, 14 पर यति, अंत मे 3 गुरु अनिवार्य)
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन।रचना पर आपकी उपस्थिति और हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया।
आद0 मोहित मुक्त जी सादर अभिवादन। रचना पसन्द आयी, लिखना सार्थक हुआ। आपका उपस्थित होकर हौसला अफजाई के लिए कोटिश आभार।
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थित होकर हौसला अफजाई के लिए दिल से आभार
आद0 मोहम्मद आरिफ भाई जी सादर अभिवादन। आपकी बात सही है। सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं झंडाबरदारों से हैं।आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया मिली। रचनाकर्म सार्थक हुआ। आभार आपका।
अतिशय व्यस्तता के करण इधर कुछ समय से मैं समय से पटल पर प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहा हूँ। जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी।बेहतरीन कविता।
आपकी रचना में देशभक्ति की भावना पूर्ण रूप से छलक रही है। हार्दिक बधाई, आ० सुरेन्द्र जी।
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,
देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत बहुत ही प्रभावशाली ताटंक छंद । आजकल देश में गाजर घास और कुकुरमुत्तों की तरह झंडाबरदार बन कर कट्टरवादी संगठन सिर उठाते रहते हैं । ये ही देश के अंदर के असली गद्दाथ है । ये दुष्ट कमीनें आए दिन कमज़ोर वर्ग को टारगेट करते रहते हैं । शायद आपका इशारा इन्हीं पर है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online