"अरे रमेश ये कैसे हुआ? और बेटे की हालत कैसी है? मुझे तो जैसे ही खबर लगी,भागा-भागा चला आ रहा हूँ" आई सी यू के बाहर खड़े रमेश से रतन ने पूछा।
रतन को देखते ही रमेश रो पड़ा। फिर अपने को संभालते हुए बोला-"क्या बताऊँ तुम्हें, मेरे घर के पास जो हाई वोल्टेज तार का खम्बा लगा हुआ था, वही कल अचानक गिर गया। और फिर ये…."
बोलते-बोलते वह फफक पड़ा।
रतन ढाँढस देते हुए बोला- "मित्र हिम्मत न हारो। सब कुछ ठीक हो जाएगा। .....डॉक्टर्स क्या कह रहे हैं?"
"क्या कहेंगे? बेटा पचास फीसदी से ज्यादा जल चुका है। अब तो कोई चमत्कार ही उसे.........।" भर्याये स्वर लिए रमेश बोला।
"ऊपर वाला है, सब ठीक होगा, भरोसा रखो .....। रतन रमेश का हाथ पकड़ कर बगल में पड़े कुर्सी पर बैठाते हुए बोला।
रतन पुनः बोल पड़ा- "यार एक बात बताओ। खम्बा तो कोई 10 साल पहले ही लगा था? "
हूँ ...... रमेश इतना ही बोल सका।
"फिर इतना जल्दी कैसे गिर गया....? सब भ्रष्टाचार की देन है मित्र! अन्यथा इतनी जल्दी खम्बा नहीं गिरता।" रतन एक सुर में बोल गया।
यह सुनते ही रमेश का हृदय चीत्कार उठा। उसकी हालत ऐसी हो गयी जैसे काटो तो ख़ून नहीं। उसे 10 साल पहले की एक-एक बात याद आने लगी। उसे लगने लगा कि जैसे अपने बेटे को उसने खुद ही जलाया है।
जब खम्बा लगाने के लिए सीमेंट गिट्टी बालू वगैरह आया था तो सीमेंट उसके घर में ही रखा गया था। उसने ठेकेदार और इंजीनियर की मदद से काफी सीमेंट ब्लैक में बेच दिया था।
वह नहीं जानता था कि उसके पापों की इतनी बड़ी सजा मिलेगी। वह कभी नीचे देखता तो कभी ऊपर क्योंकि वह सबसे अपने गुनाह छुपा सकता था लेकिन ख़ुद से नहीं..।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय भाई सुरेन्द्र जी गुनाहों की सजा अपनों को भी मिलेगी कभी यदि लोग ऐसा सोच लें तो समस्या ही ख़त्म हो जाए...सन्देश प्रद सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
जैसी करनी वैसी भरनी ।भ्रष्टाचार का घड़ा फूटना ही था ।पर जब ये कर्म किये जाते है ।तब व्यक्ति किसी से नही डरता पर भगवान की लाठी में आवाज़ नही होती ।उम्दा कथा है आद० सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी ।
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार
वाह आदरणीय शानदार चोट करती हुई लघु कथा लिखी है..सादर
आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। आपकी प्रतिक्रिया से लघुकथा लेखन में मुझे हौसला मिला। बहुत बहुत आभार आपका
हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।बेहतरीन लघुकथा।जैसी करनी वैसी भरनी।बुरे कर्मों के नतीजे सब को भोगने होते हैं, देर सबेर।
आदरणीय सुरेन्द्र जी, कथा के माध्यम से भ्रष्टाचार पर बहुत अच्छी टिप्पणी की है. हार्दिक बधाई.
आद0 आली जनाब समर साहब सादर प्रणाम। आपकी प्रतिक्रिया का मुझे बेसब्री से इंतजार रहता है। आप की प्रतिक्रिया मुझे बेहतर लिखने को प्रेरित करती है। बहुत बहुत आभार आपका आशीष देने और स्नेह बनाये रखने के लिए
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,बहुत अच्छी सन्देशप्रद लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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