For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सामाजिक विद्रूपताओं पर एक गीत (वीर रस)

देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ

कलम चलाकर कागज पर मैं, अंगारे बरसाता हूँ

कवि मंचीय नहीं मैं यारों, नहीं सुरों का ज्ञाता हूँ

पर जब दिल में उमड़े पीड़ा, रोक न उसको पाता हूँ

काव्य व्यंजना मै ना जानूँ, गवई अपनी भाषा है

सदा सत्य ही बात लिखूँ मैं, इतनी ही अभिलाषा है

आजादी जो हमे मिली है, वह इक जिम्मेदारी है

कलम सहारे उसे निभाऊं, ऐसी सोच हमारी है

काल प्रबल की घोर गर्जना, लो फिर मैं ठुकराता हूँ

देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ

टूट रहे परिवार यहाँ पर, यह कैसी लाचारी है

रिश्तों में एकाकी पन की, फैल रही बीमारी है

वक़्त नहीं है पास किसी के, औरों के घर जाने का

दौर कहीं वो चला गया सब, हँसने और हँसाने का

मात पिता हैं तन्हा जीते, बच्चे बसे विदेशों में

और निभाये जाते रिश्ते, अब केवल संदेशो में

भागमभाग बना जीवन जो, उसको आज बताता हूँ

देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ

ह्रास हुआ है नैतिकता का, बच्चे वृद्ध युवाओं में

रावण भी अब दिख जाते हैं, सन्यासी बाबाओं में

झौया भर हैं बाल बढाये, अरबों के व्यापारी हैं

ओढ़ दुशाला राम नाम का, देखों कई मदारी हैं

मुख से बोले राम राम पर, अंदर से सब काले हैं

धरम करम सब बेच रहे जो, गोरख धन्धे वाले हैं

नैतिकता के अवमूल्यन का, मैं आभास कराता हूँ

देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ

फट जाती धरती की छाती, पत्थर भी तब रोते है

बिन खाये जब किन्ही घरों के, बच्चे बूढ़े सोते हैं

जिस्म यहाँ पर बेबस बिकता, नहीं मिले जब खाने को

तार तार होती मर्यादा, तब दो रोटी पाने को

कहीं गरीबी झलक रही है, फ़टी हुई इक साड़ी में

कहीं विलासी जीवन सजता, बैठ लग्जरी गाड़ी में

दोनों के जीवन मे अंतर, सबको आज दिखाता हूँ

देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ

कहीं दामिनी तड़प रही है, पाप अधम के घेरे में

कोई बच्ची माँ बन जाती, है समाज अंधेरे में

काली उजली रातो में अब, चीख सुनाई देता है

नहीं सुरक्षित माँ बहने पर, किसे दिखाई देता है

अब तो नन्हे बच्चे भी हैं, खेल रहे हथियारों से

उम्र खेलने की है जिनकी, गुड्डे गुड़ियों तारों से

संस्कारो के नित्य पतन पर, मै तो रोष जताता हूँ

देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ

हैं दहेज में बाप माँगते,  धन दौलत की पेटी को

मार रहे हैं आज कोख में, जो अपनी ही बेटी को

देश जहाँ नारी की महिमा, निशदिन गाई जाती है

मीरा लक्ष्मी अनुसुइया की, कथा सुनाई जाती है

आज उपेक्षा की पीड़ा से, वहीं बिलखती नारी है

जीवन का आधार यहाँ जो, जिससे दुनिया सारी है

गौर कीजिए आप सभी अब, बात यहीं दुहराता हूँ

देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 8:04pm

अच्छी रचना हुई है आदरणीय सुरेंद्र जी | हार्दिक बधाई |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 13, 2018 at 3:16pm

जीवन के पहलुओं से रु बरु कराती सुन्दर रचना हुई है ,जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by vijay nikore on February 13, 2018 at 1:32pm

इस अचछी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई, आ० सुरेन्द्र जी।

Comment by नाथ सोनांचली on February 13, 2018 at 10:50am

इसे ताटंक छंद पर लिखा है मैंने आरिफ भाई

Comment by Mohammed Arif on February 12, 2018 at 8:22am

आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,

                          मेरे कहने का आशय यह है कि गीत की कुछ तो मापनी आपने तय की होगी । वह मापनी (छांदसिक विधान) क्या है ? मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि यह गीत है मगर किस छांसिक विधान के अंतर्गत ?

Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2018 at 5:33am

आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। आभार रचना पर समय देने के लिए। यह गीत है बन्धु

Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2018 at 5:32am

आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। रचना पर बेहतरीन प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार

Comment by Mohammed Arif on February 11, 2018 at 5:55pm

आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,

                           बहुत ही आक्रोश भरा गीत है मगर आपने छांदसिक विधान नहीं लिखा । विस्तृत टिप्पणी हेतु फिर आता हूँ ।

Comment by TEJ VEER SINGH on February 11, 2018 at 5:50pm

हार्दिक बधाई आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी।लेखकीय जिम्मेवारी का पूर्ण निर्वहन करते हुये एक बेहतरीन,समसामयिक और कटाक्षपूर्ण गीत।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service