बह्र- 2122 1122 1122 112/22
कोख में आने से साँसों के ठहर जाने तक
ज़िन्दगी में सकूँ मिलता नहीं मर जाने तक
मुफ़लिसी नेक दिली और ज़माने का दर्द
ये सभी सिर्फ़ सियासत में उतर जाने तक
शादी लड्डू ही नहीं एक बला है इसका
होता अहसास नहीं पंख कतर जाने तक
यार बरसात किसे अच्छी नहीं लगती मगर
खेत खलियान नदी ताल के भर जाने तक
हर तरफ़ शह्र में ख़ूँख़ार दरिन्दे घूमें
बेटियाँ ख़ौफ़ज़दा लौट के घर जाने तक
चाँदनी पर न तू इतरा ऐ हसीं चाँद बहुत
ये चमक तेरी है बस रात गुज़र जाने तक
यातना चीर हरण अग्नि परीक्षा पग-पग
झेलतीं नारियाँ ये जन्म से मर जाने तक
शाह जैसा ही समझता है शराबी ख़ुद को
ज़ह्न से मय का नशा यार उतर जाने तक
फ़न में वो बात नहीं होती जिसे उम्दः कहें
'नाथ' ये सोचले उस्ताद के दर जाने तक
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन
आपकी ग़ज़ल ग़ज़ल पर उपस्थिति और प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद। सादर
आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन
आपकी ग़ज़ल ग़ज़ल पर उपस्थिति और प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद। सादर
आद0 ब्रजेश कुमार 'ब्रज' जी सादर अभिवादन
आपकी ग़ज़ल ग़ज़ल पर उपस्थिति और प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद। सादर
आद लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी सादर अभिवादन
आपकी ग़ज़ल ग़ज़ल पर उपस्थिति और प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद। सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। बेहतरीन गज़ल।
मुफ़लिसी नेक दिली और ज़माने का दर्द
ये सभी सिर्फ़ सियासत में उतर जाने तक
हर तरफ़ शह्र में ख़ूँख़ार दरिन्दे घूमें
बेटियाँ ख़ौफ़ज़दा लौट के घर जाने तक
बहुत बढ़िया। खूबसूरत खयालातों की यह ग़ज़ल पढ़कर बहुत अच्छा लगा। बधाई स्वीकार कीजिए।
वाह आदरणीय खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई...
आ. भाई सुरेन्द्र नाथ जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आद0 रवि भसीन 'शाहिद' भाई जी सादर अभिवादन
आपकी दाद पाकर प्रफुल्लित हूँ। शुक्रियः आपका। सादर
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब, आदाब! आपको इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर दिली मुबारकबाद जनाब, और मतले के लिए विशेष तौर पे दाद क़ुबूल करें!
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