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गुलाब ऐसे ही थोड़ी गुलाब होता है (ग़ज़ल)

1212 1122 1212 22

क़दम-क़दम पे नुमाया सराब होता है
नज़र में दिखता है फिर चूर ख़्वाब होता है

नयी उमर में निगाहों में आब होता है
भड़क उठे जो यही इंक़िलाब होता है

दिलों की गुफ़्तगू भी क्या क़माल होती है
नज़र-नज़र में सवाल-ओ-जवाब होता है

अगर हो रब्त दिलों में तो दूरियां कैसी
ज़मीं से दूर बहुत आफ़ताब होता है

जो काटनी हों कभी हिज्र की सियाह शबें
हर इक ख़याल तेरा माहताब होता है

वो लोग चेहरों को पढ़ना सिखा रहे हम को
बजाय चेहरे के जिनपर नक़ाब होता है

यूँ हम तो होते हैं अंजाम-ए-इश्क़ से वाकिफ़
हमें यक़ीन मगर बेहिसाब होता है

तेरे ख़याल के सहरा में हम भटकते हैं
तो जाके शे'र कोई क़ामयाब होता है।

चुभन हो लाख मगर ख़ुशबू कम नहीं होती
गुलाब ऐसे ही थोड़ी गुलाब होता है

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Gurpreet Singh jammu on February 23, 2017 at 11:16am

वाह वाह जयनित जी... क्या शानदार ग़ज़ल कही है आपने,,,पढ़ कर मज़ा आ गया,,,हरेक शेअर शानदार। 

Comment by Samar kabeer on February 22, 2017 at 11:09pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबर पेश करता हूँ ।

'दिलों की गुफ़्तगू भी क्या क़माल होती है
नज़र-नज़र में सवाल-ओ-जवाब होता है'

इस शैर के सानी मिसरे में व्याकरण दोष है । 'सवाल-ओ-जवाब' बहुवचन है इसलिये रदीफ़ के साथ इंसाफ़ नहीं हो रहा है, देखियेगा ।
Comment by Mohammed Arif on February 22, 2017 at 5:10pm
आदरणीय जयनित जी आदाब,क्या ख़ूब ग़ज़ल कही आपने । हर शे'र उम्दा है । बधाई स्वीकार करें । बह्र के मुताल्लिक विद्वजजन बतायेंगे ।

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