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लोकतंत्र का ताजमहल (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

क्षितिज पर अद्भुत नज़ारा था। पर्यटक-स्थल पर राजनीति-शास्त्र के प्रोफेसर वर्मा जी स्टाफ के बाक़ी लोगों की गतिविधियाँ ध्यान से देख रहे थे। कोई ढलती शाम के आसमान की फोटो ले रहा था, कोई अपनी सेल्फ़ी। त्रिपाठी जी उनके पास आकर संबंधित कविता सुनाने लगे। जब उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया तो त्रिपाठी जी बोले- "वर्मा जी, कहाँ खो गये? फिर कोई गहन चिंतन?"

"हाँ भाई, यह दृश्य देखकर कुछ मशहूर नारे याद आ गये थे!"

"नारे! इस वक़्त! कौन से?" त्रिपाठी जी ने पूछा।

आसमान की ओर हाथ उठाते हुए वर्मा जी बोले- "अरे वही न .. जिसमें मशहूर हस्तियों के नाम लेकर कहते हैं जैसे कि जब तक सूरज चाँद रहेगा, इन्दिरा तेरा नाम रहेगा या जे.पी. तेरा नाम रहेगा!"

"हाँ तो? अभी क्यूँ याद आ गये!"

"वे सब चले गये न! ... अब सोच रहा हूँ कि क्या कभी यह नारा भी जन्म लेगा ? ...जब तक सूरज चाँद रहेगा, लोकतंत्र तेरा नाम रहेगा!"

यह सुनकर वर्मा जी के कंधे पर हाथ रखकर त्रिपाठी जी ने कहा - "हाँ, कुछ मुल्कों में न सिर्फ़ लोकतंत्र बल्कि लोकतांत्रिक विचारधारा भी संकट में तो है, ख़ुदा ख़ैर करे ... लेकिन अपने देश का लोकतंत्र तो परिपक्व और मज़बूत ही हुआ है न!"

"मज़बूत हुआ नहीं है, इसकी नींव मज़बूत है और जो ताजमहल सा है नींव में साधारण किन्तु मज़बूत पत्थर हैं और ऊपर संगमरमर । नींव कमज़ोर करने की कोशिशें या ग़लतियें न हों, तभी टिक सकेगा।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 1, 2017 at 3:47pm
रचना आपको पसंद आया, प्रयास सफल हुआ। विचार साझा करने व हौसला अफ़जा़ई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय नीता कसार जी व डॉ. आशुतोष मिश्रा जी।
Comment by Nita Kasar on March 1, 2017 at 6:35am
ताजमहल की तरह लोकतंत्र हमारे देश की अनमोल धरोहर है जिसे सुदृढ़ बनाये रखाना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है बधाई आपको आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 28, 2017 at 9:39pm
आदरणीय शेख जी लोकतंत्र को बचाना हम सबकी जिम्मेवारी है हमें आने वाली पीढ़ियों को सुकून भरी जिंदगी अगर देनी है तो वाकई ऐसे हर प्रयास को नाकाम बनाना ही पड़ेगा ताकी नयी पीढी को स्वस्थ लोकतंत्र मिल सके बहुत ही सूंदर रचना सादर

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