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ग़ज़ल -है बोलने का मुझे इख़्तियार, कह दूँ क्या - ( गिरिराज )

1212   1122   1212    22 /122

सुनें वो गर नहीं,तो बार बार कह दूँ क्या

है बोलने का मुझे इख़्तियार, कह दूँ क्या

 

शज़र उदास है , पत्ते हैं ज़र्द रू , सूखे

निजाम ए बाग़ है पूछे , बहार कह दूँ क्या

 

कहाँ तलाश करूँ रूह के मरासिम मैं

लिपट रहे हैं महज़ जिस्म, प्यार कह दूँ क्या

 

यूँ तो मैं जीत गया मामला अदालत में

शिकश्ता घर मुझे पूछे है, हार कह दूँ क्या

 

यूँ मुश्तहर तो हुआ पैरहन ज़माने में

हुआ है ज़िस्म का भी इश्तिहार, कह दूँ क्या

 

हाँ, लहज़ा तल्ख़ था लेकिन कही हक़ीकत थी

ज़रा सा पूछ तो लेते, कि ख़ार कह दूँ क्या

 

वो, एक लम्हा भी जिसने मुझे हँसाया है

ये दिल कहे, उसे परवर दिगार कह दूँ क्या

 

*****************************************

 मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 907

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 1:22pm

आदरनीय आमोद भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 12:25pm

आदरनीय महेन्द्र भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 12:25pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 12:24pm

आदरणीय राघव भाई , प्रवास मे होने के कारण  आभार प्रदर्शन के लिये देरे से उपस्थित हो पाया , क्षमाप्रार्थी हूँ ।

आदरनीय , अच्छा लगा ये जान कर कि हमारे ओ बी ओ परिवार मे एक और उस्ताद शायर शामिल हुये हैं , जिनके अनुभव से हम सभी का भला होगा ।

आपकी सलाह सर आखों पर , लेकिन एक आध शेर आप उदाह्हरण स्वरूप आप सुधार कर बता देते तो मुझे सुधार में आसानी होती ।

मेरे प्रति आपकी धारणा -- जो आपके इस कथन से जाहिर है // आप जैसे कद के शायर से अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं //  सर्वथा निर्मूल है , मै अभी  गज़ल के मामले मे बच्चा ही हूँ , और यही मान कर आप मुझे सिखायें और उम्मीदें रखे , ऐसी मेरी आपसे प्रार्थना है । मेरी कुल उम्र अभी तीन साल ही मान कर चलियेगा ...
आपका पुनः गज़ल पर उपस्थित होने के लिये आभार ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 7, 2017 at 12:23pm
वह्ह्ह दादा बहुत खूब गजल कही है
शजर उदास है पत्ते हैं जर्द रु सूखे

वह्ह्ह वह्ह्ह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 12:09pm

आदरनीया राजेश जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 12:08pm

आदरनीय नीलेश भाई , सराहना और सलाह के लिये आभार आपका । आवश्यक सुधार कर लूँगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 12:07pm

आदरनीय शिज्जु भाई , आभार आपका ,

 प्रवास मे होने के कारण देरे से उपस्थित हो पाया ।

Comment by Mahendra Kumar on March 5, 2017 at 12:35pm
आदरणीय गिरिराज सर, बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 7:20am
आदरणीय गिरिराज जी सादर अभिवादन, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने, कुछ सुझाव गुणीजनों ने दिया हियी, देखियेग। मुझे तो सभी अशआर अच्छे लगे, दाद के साथ बधाई निवेदित हैं।

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