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सुंदर है हर रचना
रवि! बड़े परेशान लग रहे हो -क्या बात है"-रवि के जिगरी दोस्त अनिल ने बड़े ही सहज भाव से पूछा। "कुछ नहीं- बस यूँ ही" प्रत्यूतर में रवि ने कहा।"अरे!कुछ तो होगा ....तभी तो..."अनिल ने रवि ने वास्तविक कारण जानने के उद्देश्य से दुबारा पूंछा।"भाई जी-बस यूँ ही-अपनी नयी रचनाओं को लेकर परेशान था,अथक प्रयास के बाद भी रचनाओ में वो सुंदरता नहीं दिख पा रही है, जो सुंदरता के मानदंडों पर खरी उतर सके"अनिल को अपनी परेशानी से अवगत कराते हुए रवि न जवाब दिया।कुछ देर गंभीरता के साथ सोचने के बाद बड़े ही सहज भाव से बोला-"भाई रवि, हर भाव सूंदर है , हर रचना सुंदर है।""ऐसा कैसे! " एक जिज्ञासु की तरह रवि ने जानने के भाव से कहा "वैसे ही जैसे हर कुरूप पत्थर के अंदर , हर सुन्दर से सूंदर मूरत के अंदर छिपी होती है दुनिया की सबसे खूब सूरत मूरत-पत्थर से जितना अनाबश्यक भाग हटता जायेगा मूर्ती उतनी ही सूंदर और परिष्कृत होती जायेगी-जरूरी है जरूरी है सधे हुये हाथों के साथ सतत शिल्पकारी के अभ्यास की"अनिल ने समझाते हुए कहा।चेहरे पर हताशा की जगह रवि के चेहरे पर खुशी और उसके हाथों में कलम फिर अपनी जगह सुनिश्चित कर चुकी थी।
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 1, 2017 at 1:38pm
आदरणीय शिज्जु जी गद्य लेखन का प्रयास कर रहा हूँ यह मेरी दूसरी रचना है लघु कथा के सम्बन्ध में इस रचना के बारे में जानकारी इस बिधा के बिद्वानो से ही होगी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभारी हूँ सादर

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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2017 at 11:00am

आ. डॉ आशुतोष जी पहली दफा मैं आपकी गद्य रचना से गुज़र रहा हूँ, यह नए सीखने वालों के लिए सबक की तरह है। शिल्प पर तो जानकार ही बता पाएँगे मेरी तरफ से आपको मुबारकबाद

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