For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपूर्ण रह जाती है मेरी हर रचना -आशुतोष

अपनी जाई
गोद में खिलाई
लाडली सी बिटिया
जो कभी फूल
तो कभी चाँद नजर आती है/
जिसके लिए पिता का पितृत्व
और माँ की ममता
पलकें बिछाते हैं;
किन्तु उसी लाडली के
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही,
उसके सुखी जीवन की कामना में जब
उसके हमसफ़र की तलाश की जाती है/
तब उसके चाल चलन
उसकी बोली , उसकी शिक्षा
रंग रूप , कद काठी
सब कुछ जांची परखी जाती है .....
किसी की नजर तलाशती है
उसमे काम की क्षमता
कोई ढूंढता है उसमें
अर्थोपार्जन में उसकी सहभागिता
कोई देखता है उसके रूप में सम्मोहन
हर नजर कुछ न कुछ तलाशती है
और खरी नहीं उतर पाती है
माँ की चाँद सी गुड़िया
हर जेहन में .....
कुछ बैसे ही ...जैसे
सधे हाँथों से पत्थर पर प्रहार करते हर मूर्तिकार को
नजर आती है उसकी मूर्ती
उसकी श्रेष्ठतम शिल्प
लेकिन उतरते ही हाट में
जब ढूँढने लगता है कोई साधक
मूरत में साधना के भाव
जब कोइ कला प्रेमी
निरखने लगता है मूरत का सौंदर्य
और जब कोइ ख्यातिलब्ध मूर्तिकार
जो मानता है कि और सधे होने थे हाँथ
तब किसी के दिल में बसती
किसी को न रुचती
और किसी के ठीक-ठाक है जैसे ख्यालों के साथ
आ जाती है सर्जक मूर्तिकार की मूर्ती
अपूर्णता के घेरे में ...
कुछ बैसे ही
मेरे सीने में छटपटाती
किसी ज्वालामुखी के लावा सम
मेरे लवो को चीर कर जन्म लेते मेरी रचना
या कभी शांत चित्त मन मस्तिष्क में उपज
उतरती है कागज पर;
ग्रीष्म कालिक नदी की तरह शनैः शनैः
और देती है
अपने जन्म पर
कुछ बैसा ही सुखद अहसास;
जैसा मिलता है किसी माँ को
प्रसव पीड़ा के बाद
अपने कलेजे के टुकड़े को सीने से लगाने में/
जिसमे महसूस होती है कभी
उगते सूरज की रश्मियों की गुनगुनाहट
कभी तपते सूरज की तपिश
कभी फूलों की खुश्बू
तो कभी खारों की चुभन
कभी जागरूक बनाती
कभी सचेत करती/
भावों की नदी से बहती प्रतीत होती
मेरी रचना,
शब्दों का सौन्दर्य बोध
धुन, लय ,
-पाठक की अपनी सोच से समरसता
समरूपता
जैसी तमाम
कसौटियो पर कसी जाती है
और लाडले बिटिया की तरह;
मूर्तिकार की मूरत की तरह
कहीं न कहीं से अपूर्ण रह जाती है

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 3:04pm

आदरणीय आशुतोष भाई , सुन्दर भाव पूर्ण कविता के लिये हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 5, 2017 at 11:26am
आदरणीय बृजेश जी रचना को स्नेह देने के लिए आपका ह्रदय से आभार सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 5, 2017 at 7:52am
वाह आदरणीय डा.साहब बहुत ही खूबसूरती से भावों को शब्द रूपी मोतियों में ढाला है..बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 4, 2017 at 11:39pm
आदरणीया राजेश जी रचना को आपका अनुमोदन पाकर हौसला मिला हार्दिक धन्यवाद सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 4, 2017 at 8:43pm

पर यह रचना अपूर्ण नहीं है सम्पूर्ण है बहुत ही शानदार रचना लिखी है सच में बेटी जैसी ही होती है कोई रचना आपने दिल से  ढेरों बधाई आपको आद० डॉ ० आशुतोष जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 4, 2017 at 4:03pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी आदरणीय आरिफ जी और आपने बढ़िया मशविरा दिया है मैं निश्चित रूप से उसपर अमल करूंगा . दरअसल कालेज के कार्यक्रम में सुनाने के लिए लिखी थी कुछ रचनाएँ उनमे से एक यह है ,और शायद  थोडा समय लगे इसलिए लम्बी थी पर पाठकों की बात से इसमें निश्चित फर्क करना पड़ेगा ..मैं ध्यान दूंगा ..आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 3:52pm
आदरणीय आशुतोष मिश्र जी सादर अभिवादन। मिश्र जी अतुकांत रचना में चुकि गेयता और लय का आभाव होता है,लिहाजा उसे कम शब्दों, शब्दो के दुहराव से बचते हुए एक बिम्ब साधने की कोशिश होनी चाहिए, पाठक उसी बिम्ब को खोजते खोजते पूरी रचना पढ़ जाता है और अंत में उसे वह बिम्ब भी मिल जाता है। इस दृष्टि को आत्मसात करके ही अतुकांत विधा लिखी जाये तो मेरी समझ से उत्तम हो। आपने कुछ बड़ा कर दिया और शब्दों को कम कर सकते है आप। इस बेहतरीन प्रयास के लिए मेरी दिली मुबारकबाद। सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 4, 2017 at 2:39pm

आदरणीय आरिफ जी , रचना पर आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद , आपके मशविरे पर अमल करूंगा सादर 

Comment by Mohammed Arif on March 4, 2017 at 2:31pm
आदरणीय आशुतोष जी आदाब, बेटी की लालन-पालन से लेकर वर तलाशने तक माता-पित को किन परिस्थितियों से गुज़रना होता है ये वही जानते हैं । एक बेटी के पिता को बहुत साहसी होना पड़ता है ।वैसे आपकी रचना में कुछ लंबान ज़्यादा ही हो गया है । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
18 hours ago
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service