दो कवितायें
दोस्त
जब मेरे पास दोस्त थे
तब दोस्तों के पास कद हद पद नहीं थे
और जब दोस्तों के पास पद हद कद थे
मेरे पास दोस्त नहीं
धन
जब मेरे पास धन नहीं था
तब समझते थे सब मुझे बदहाल
पर मैं खुश था , बहुत खुश था
और जब मेरे पास है अकूत सम्पति
दुनिया मुझे खुशहाल समझती है
और मैं तडपता हूँ बिस्तर पर
नींद के सुकून से भरे एक झोंके के लिए
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय भाई सुरेन्द्र जी आप द्वारा मुझे सतत हौसला मिलता है आपका स्नेह यूं ही सदैव मिलता रहे इस कामना के साथ सादर
आदरणीय समीर सर ..मुझे अपनी हर रचना पर आपका मार्गदर्शन मिलता है जिससे रचनाधर्मिता की बारीकियों को सीखने में बड़ी मदद मिलती है आपको रचना पसंद आयी ये मेरे लिए आशीर्वाद है सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय अशोक सर रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से बड़ा सुकून मिला आप सब के मार्गदर्शन से लिखने की ऊर्जा मिलती है सादर
आदरणीय भाई ब्रिजेश जी रचना को आपका अनुमोदन मिलने से मैं आश्वस्त हूँ सादर
आदरणीय आरिफ जी .रचना पर उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी सादर, दोस्त होने के लिए जहां किसी पद या कद की जरूरत नहीं होती है वैसे ख़ुशी पाने के लिए रुपियों पैसों की ही जरूरत नहीं होती.दोनों ही क्षणिकाएं बहुत सुंदर हुई है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
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