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खुद आंसू पीते हैं

अहदे नौ में
माएं दूध पिलाती नहीं हैं
गायें भैसें  कसाईयों से बच पाती नहीं हैं
इससे तकलीफ उन्हें नहीं होती है
जो खरीद सकते हैं दूध
सोने की कीमतों पर
इससे तकलीफ उन्हें होती है जो
दूध की बोतल में भरकर पानी
अपने रोते हुए मासूम को झूठी दिलासा दिलाते हैं
खुद आंसू पीते हैं
बच्चो को पानी पिलाते हैं
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 25, 2017 at 9:07pm
आदरणीय भाई सुरेन्द्र जी मैं जरूर आपके मशविरे पर अमल करूंगा रचना पर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by नाथ सोनांचली on April 25, 2017 at 7:49am
आद0 आशुतोष मिश्र जी सादर अभिवादन, बहुत कुछ इस रचना पर गुनिकह चुके है, आप इसे देख लीजियेगा।सादर, मेरी कोटिश बधाइयाँ आपको।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2017 at 11:22pm
आदरणीय भाई बृजेश जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2017 at 11:20pm
आदरणीय समर सर आपके मशविरे से मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ है दरअसल आज मावे के लिए सिंथेटिक दूध पीने के लिए सिंथेटिक दूध के कारन स्वास्थ्य के कारणों दूध के नाम पर जहर मिल रहा है बेशक दूध अमीर गरीब सबको मिल रहा है लेकिन जिस मात्र में दूध का उपयोग हो रहा है उस अनुपात में जानवर नहीं दीखते कुछ ऐसे ही भावों से रचना लिखी थी आपके मार्गदर्शन से चिंतन को नया आयाम मिलता है अच्छे प्रयास पर आपका शाबाशी को भी आशीर्वाद मानता हूँ और गलतियों पर फटकार को भी सादर प्रणाम के साथ
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2017 at 11:11pm
आदरणीय रोहित भाई आपके मशविरे पर जरूर अमल करूंगा रचना पर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2017 at 11:09pm
आदरणीय आरिफ जी मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ मैं अपनी औचित्य को सार्थक अंजाम नहीं दे पाया अगले प्रयास पर ध्यान दूंगा सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 24, 2017 at 9:14pm
आदरणीय डा.साहब..एक कसक तो पैदा करती है आपकी कविता..सादर
Comment by Samar kabeer on April 24, 2017 at 12:16pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,आप अपनी कविता में जो कहना चाहते हैं वो स्पष्ट नहीं हो रहा है,हमारे देश में,गाय, भैंस,बकरी,क़साइयों के हाथों में आने के बाद भी ख़त्म नहीं हो गई हैं,बड़ी तादाद में मौजूद हैं,और दूध की भी यहाँ कोई कमी नहीं है,सभी अमीर ग़रीब सब को मिल रहा है ।
Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 24, 2017 at 7:45am

आशुतोष जी अच्छी कविता कहने का प्रयास किया किँतु अभी काफी  प्रयास बाकि है...गुणीजनों  के मार्गदर्शन में रहें ..शुभकामनाएँ

Comment by Mohammed Arif on April 23, 2017 at 5:50pm
आदरणीय आशुतोष जी आदाब, एक अच्छी कविता कहने का प्रयास आपने किया मगर सफल नहीं हो पाएँ । भावार्थ नहीं आया । इस प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें ।

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