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पूर्वजों की विरासत

हे महान पूर्वजों गर्व करो
हम निखार रहे हैं
वो तमाम सम्पदा
जो सौंपी थी तुमने, हमें बिरासत में...
बहुत घने हो गए थे जंगल
खो जाते थे बेश- कीमती हांथी दांत
गल जाती थी शेर की खाल
हो जाता था सदैव
तुम्हारी सम्पदा का नुक्सान,
सहन नहीं होता था ये हमसे
इसलिए मार दिए हमने हांथी और शेर
काट दिए जंगल,
बना लिए सोफे, बेड, ड्रेसिंग टेबल और मकान,
इनपे बैठे , लेटे अपना चेहरा जब भी संवारते हैं
मकान में सजे हांथी दांत और शेर की खाल ,
पूरी चौकसी के साथ निहारते हैं...........
हे महान पूर्वजों
तुम्हारे वो पुराने मूल्य, वो संस्कार, वो स्नेहाधार
ज़माने की हवाओं और संक्रमण से बचाने के लिए
सजा दिए हैं हमनें
शो केशों औए संग्रहालयों में
जीवन त्याग का पर्याय हो गया है
अब राजतंत्र की जगह लोकतंत्र
नृप की जगह नेता
और हस्तिनापुर की जगह दिल्ली हो गया है
अब राजनीत चूहे -बिल्ली का खेल है
बिल्ली तो सौ चूहे खाकर हज चली जाती थी
पर नेताओं को जनता की चिंता सताती है
आम जनता गेहूं, चावल नहीं खा पाती है
यह सोचकर
नेताओं को नींद नहीं आती है
हज न जाकर , स्वयं के लिए पुण्य न कमाकर
नेता त्याग की भावना दिखा रहे हैं
डामर , यूरिया और पशुओं के चारे से
काम चला रहे हैं
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 6, 2017 at 2:14am
आदरणीय समर सर सबसे पहले तो देर से ही सही शिक्षक दिवस पर मेरा प्रणाम स्वीकार करें ।रचना पर आपके आशीर्वाद के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
Comment by Samar kabeer on September 5, 2017 at 9:34pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,बहुत उम्दा रचना हुई है,दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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