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बहुत बढ़िया कथानक चुना है आपने रचना के लिए आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी सर, सादर बधाई स्वीकार करें| कृपया सुधीजनों के सुझावों पर गौर करें, भाषागत त्रुटियाँ जल्दी ठीक की जा सकती हैं, जैसे कहीं-कहीं सुंदर के स्थान पर सूंदर हो गया है, प्रत्युत्तर की बजाय प्रत्यूतर हो गया है| इसके अलावा अलग-अलग पंक्तियों में तोड़कर इसके पठन को आप और भी अधिक प्रभावी बना सकते हैं| सादर,
आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय आशुतोष जी, साहित्य सम्बन्धी मेरी अत्यल्प समझ के अनुसार आपकी यह रचना निश्चित ही लघुकथा की श्रेणी में आएगी। लघुकथा के विन्यास के सन्दर्भ में मैं उसकी तीन प्रमुख विशेषताओं को आपके समक्ष रखना चाहूँगा।
1. आकार (आ. योगराज सर में अनुसार एक आदर्श लघुकथा में शब्दों की संख्या लगभग तीन सौ शब्दों के आसपास होनी चाहिए।)
2. विस्तार (लघुकथा किसी क्षण विशेष से सम्बन्धित होती है इसलिए उसका विस्तार सीमित होता है। इसका उल्लंघन कालदोष को जन्म देता है। यदि एक से अधिक काल (दिन, महीने अथवा वर्ष) को लघुकथा में स्थान देना अपरिहार्य हो तो उसके लिए फ़्लैशबैक तकनीक का प्रयोग करना चाहिए।)
3. अन्त (लघुकथा के अन्त पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। आ. योगराज सर के अनुसार लघुकथा की अन्तिम पंक्ति को पढ़कर ऐसा लगना चाहिए जैसे किसी ततैया ने डंक मार दिया हो। दूसरे शब्दों में, लघुकथा का अन्त चौंकाने वाला अथवा प्रभावी होना चाहिए।)
जो कुछ भी मैंने इस मंच और आ. योगराज सर से सीखा है उसे ही आपके समक्ष रखने की कोशिश की है। आशा है बात कुछ स्पष्ट हुई होगी। सादर।
आदरणीय सुरेन्द्र जी आपकी प्रतिक्रिया से बहुत हौसला मिला .इस बिधा में जो सूक्ष्म फर्क है उससे आत्मसात नहीं कर पा रहा हूँ / यह रचना लघु कथा कहलायेगी कि नहीं यह संशय अभी भी बना हुआ है आदरणीय योगराज राज सर के दिए मशविरे से कालखंड और संक्षिप्त करने तक की बात को अमल में लाने की कोशित अभी कर पाया हूँ लेकिन तकनीकी पक्ष के सम्बन्ध में किसी बिद्वान के मशविरे का इंतज़ार कर रहा था ..प्रयास करता रहूँगा .प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर
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