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भँवरे कलियाँ तरु झूम उठें जब फाग बयार करे बतियाँ|
दिन रैन कहाँ फिर चैन पड़े कतरा- कतरा कटती रतियाँ|
कविता, वनिता, सविता, सरिता ढक के मुखड़ा छुपती फिरती|
जब रंग अबीर लिए कर में निकले किसना धड़के छतियाँ|
नव लाल गुलाल मले मितवा हँसती सखियाँ हँसती नगरी|
कजरा लहका गज़रा महका मुख लाल हुआ पिघली सगरी|
तन काँप उठा धड़का जियरा चुप देह रही चुप होंठ हिले|
पर बोल पड़ी अँखियाँ पगली छलकी झट प्रीत भरी गगरी|
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० लक्ष्मण रामानुज लडिवाल जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया
आद० सुरेश कुमार कल्याण जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया
आद० राम आश्रय जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया
आद० विजय निकोरे जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया
आद० सत्यनारायण सिंह जी, आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया
आद० महेंद्र कुमार जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया |
अति सुंदर मनोहारी मुक्तक के लिए हार्दिक बधाई -
जब छंद रचे दुर्मिल में तब भाव बने अति सुन्दर सुन्दर
कहना हमको लगती रचना मन भावन रूप मनोहर |
आदरणीय गिरिराज जी ,आपको प्रस्तुति पसंद आई दिल से बहुत बहुत आभार आपका सादर .
आद० रामबली गुप्ता भैया ,आपका कहना सही है ये सवैया छंद पर आधारित मुक्तक ही हैं शीर्षक में गलती वश ये नहीं लिख पाई इसको ठीक कर लूँगी यह मैं पहली प्रतिक्रिया के वक़्त ही कह चुकी हूँ मैंने सवैया पहली बार नहीं लिखे भैया पहले भी बहुत बार लिख चुकी हूँ मेरी प्रकाशित पुस्तक काव्य कलश में भी सवैया लिखे हुए हैं ,यहाँ सगरी का अर्थ सम्पूर्ण/सारी से लिया है |
आपका सवैया सुन्दर है बहुत बहुत बधाई एवं आभार .
आद० सुरेन्द्रनाथ जी ,आपको सवैया छंद पर आधारित ये मुक्तक पसंद आये दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
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