सरसी छंद
वृन्दावन की ले पिचकारी,बरसाने का रंग|
अंग अंग धो डालो पीकर ,महादेव की भंग|
राधा जैसी पावनता ले ,कान्हा जैसा प्यार|
बरसाओ पावन रंगों की ,रिमझिम मस्त फुहार|
चन्दा से लेकर कुछ चाँदी ,औ सूरज से स्वर्ण|
केसर की क्यारी से चुनकर ,केसरिया नव पर्ण|
सच्चाई मन की अच्छाई ,साथ मिलाकर घोट|
पावन रंग बनाना सच्चा ,नहीं मिलाना खोट|
द्वेष क्लेश से मैले मुखड़े ,जग में मिलें अनेक|
भूल हरा केसरिया आओ ,हों जाएँ सब एक|
भीतर से तन मन उजला हो,तभी सफल हो पर्व|
अपने भारत के पर्वों पर ,हम सब को हो गर्व|
---------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
प्रिय कल्पना भट्ट जी ,आपको ये छंद पसंद आये बहुत बहुत आभार आपका .एक पुरानी पोस्ट को ताज़ा करने का भी शुक्रिया .
बहुत सुंदर छंद कहे हैं आपने आदरणीया राजेश दी | मजा आया पढ़कर | बहुत बहुत बधाई आपको | सादर |
प्रिय सीमा मिश्रा जी ,आपको छंद पसंद आये आपका बहुत बहुत आभार |
आद० डॉ० आशुतोष जी ,आपकी प्रतिक्रिया से मन हर्षित है आपको छंद पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ .
आद० समर भाई जी ,आपको ये सरसी छंद पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया आपका दिल से बहुत बहुत आभार .
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