For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क में खुद जाँ लुटाने आ गए (ग़ज़ल 'राज')

हाजिरी वो ज्यों  लगाने आ गए

याद उनको फिर बहाने आ गए

 

मुट्ठियों में वो नमक रखते तो क्या 

जख्म हमको भी छुपाने आ गए

 

चल पड़े थे हम कलम को तोड़कर

लफ्ज़ हमको खुद बुलाने आ गए

 

जेब मेरी हो गई भारी जरा 

दोस्त मेरे आजमाने आ गए

 

रोज लिखना शायरी उनपर नई  

याद हमको वो फ़साने आ गए

 

शमअ इक है लाख परवाने यहाँ 

इश्क में खुद जाँ  लुटाने आ गए  

 

झील में अश्जार के धुलते  बदन

कुछ परिंदे भी नहाने आ गए 

 

देख कर आकाश पर कौस-ए-क़ज़ह  

लोग आँखों से चुराने आ गए  

 

आशनाई उनकी आँखों से कमाल

अश्क मेरे झिलमिलाने आ गए

 

हाथों पैरों में हिना गीली मगर

बज़्म की रौनक बढाने आ गए

------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1233

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 21, 2017 at 4:38pm

आद० शून्य आकांक्षी जी ,ग़ज़ल पर आपकी शिरकत से हर्षित हूँ आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ |

Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on May 21, 2017 at 4:16pm

"मुट्ठियों में वो नमक रखते तो क्या 

जख्म हमको भी छुपाने आ गए"
वाह वाह ! बहुत खूब ! शानदार ग़ज़ल | हार्दिक बधाई आदरणीया  rajesh kumari जी  .......


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2017 at 6:22pm

आद० गिरिराज भंडारी जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया समर भाई जी के मार्गदर्शन में यूँही आगे बढ़ते रहें दुआ है खुदा से  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2017 at 6:20pm

आद० समर भाई जी पुनः आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2017 at 6:16pm

आदरणीया राजेश जी , बेहतरीन गज़ल कही है आपने , बधाइयाँ स्वीक्कार करें । आ. समर भाई की प्रतिक्रिया से एक और शब्द का ज्ञान हुआ .. उनका भी आभार ।

Comment by Samar kabeer on April 5, 2017 at 10:46am
अब ठीक हो गया बहना ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2017 at 6:44pm

ओह्ह्ह भाई जी फिर से गलती हो गई जबकि मूल पोस्ट में ये सुधार कर  चुकी हूँ अच्छा आपने फिर ध्यान दिलाया ये तो अर्थ का अनर्थ हो गया अभी संशोधित करती हूँ |

Comment by Samar kabeer on April 4, 2017 at 6:24pm
बहना 'कौस-ए-क़ज़ा' नहीं "कौस-ए-क़ज़ह','क़ज़ा'तो मौत है ,
'कौस'का अर्थ है '(1)कमान(2)दायरे का एक हिस्सा)(3)आसमान का नवां बुर्ज जो कमान की शक्ल का नज़र आता है ।
और "क़ज़ह"का अर्थ है,'ज़र्द सब्ज़ सुर्ख़ रंग ।
इसलिये फिर से संशोधन करें और 'कौस-ए-क़ज़ा' की जगह "कौस-ए-क़ज़ह' लिखें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2017 at 4:20pm

मोहतरम जनाब तस्दीक साहब आपको ग़ज़ल पसंद आई तह-ए-दिल से आपका बहुत- बहुत शुक्रिया| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2017 at 4:17pm

आद० नीलेश भैया, आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया आपका |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
1 hour ago
Admin posted discussions
3 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
15 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
22 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service