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इश्क की दास्ताँ यह छुपानी नही (गजल)

बहर:- 212-212-212-212

फर्ज के वास्ते बद-जुबानी नही ।
फर्ज वो राह है जिसके मानी नही ।।

हिज्र से बढ़के कोई कहानी नही।।
इश्क की दास्ताँ यह,छुपानी नही ।।

रूठ कर आप ने ही तो रुसवा किया।
आप ने ही मेरी बात मानी नही।।

शोर-ओ- गुल मे बसर हो गई जिंदगी ।
यूं लगे हम ने पाई जवानी नही।।

उम्र का हर तजुर्बा गरल दे रहा ।
इतना जहरीला अश्को का पानी नही ।।

जानलेवा रहा जिंदगी का सफ़र ।
हर कदम मौत है जिंदगानी नही।।

एक दिन कान में छुपके से बोला कोई ।
तुमभी ढलने लगे अब जवानी नही ।।

एक तो मै कभी कुछ भी लिखता नही ।
गर उठा लू कलम कोई सानी नही ।।


मौलिक/ अप्रकाशित
अमोद बिन्दौरी ..

Views: 809

Comment

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Comment by Mohammed Arif on March 7, 2017 at 12:02pm
आदरणीय अमोद जी आदाब, बेहतरीन ग़जल । शे'र दर शे'र दाद देता हूँ । मुबारकबाद क़ुबूल करें । अनुस्वार और अनुनासिकता की ग़लतियाँ हैं ।

कृपया ध्यान दे...

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