ग़ज़ल
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(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल )
क़ियामत की वो चाल चलते रहे |
निगाहें मिलाकर बदलते रहे |
दिखा कर गया इक झलक क्या कोई
मुसलसल ही हम आँख मलते रहे |
यही तो है गम प्यार के नाम पर
हमें ज़िंदगी भर वो छलते रहे |
मिली हार उलफत के आगे उन्हें
जो ज़हरे तअस्सुब उगलते रहे |
तअस्सुब की आँधी है हैरां न यूँ
वफ़ा के दिए सारे जलते रहे |
असर होगा उनपर यही सोच कर
निगाहों से आँसू निकलते रहे |
था तस्दीक़ शाना किसी गैर का
जहाँ बैठ कर वो उछलते रहे |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मुहतरम जनाब मोहित साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाइ
का बहुत बहुत शुक्रिया , महरबानी ---
मुहतरम जनाब सत्विन्दर कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी --
मुहतरम जनाब ब्रजेश . कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मुहतरम जनाब सत्विन्दर कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मुहतरम जनाब राघव साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
जनाब ग़ज़ल तो ग़ज़ल होती है वो न कभी बदली है और न बदलेगी
अगर इसे बदलने की कोशिश की गयी तो वो ग़ज़ल नहीं रह सकती
मेरे हिसाब से मिसरा मुकम्मल है बदलाओ की ज़रूरत नहीं है ----सादर
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---आपके मशवरे का शुक्रिया
मिसरा तो यही है " तअस्सुब की आँधी है हैरां न यूँ " आप ने जैसा कहा
वैसा भी हो सकता है ---सादर
मुहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मुहतरम जनाब रवि साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और
हौसला अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
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