ग़ज़ल (दोस्तों की महरबानी हो गई )
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फ़ाईलातुन--फ़ाईलातुन --फाइलुन
यूँ न उनको बदगुमानी हो गई |
दोस्तों की महरबानी हो गई |
भूल बचपन के गये वादे सभी
उनको हासिल क्या जवानी हो गई |
नुकताची को क्या दिखाया आइना
उसकी फ़ितरत पानी पानी हो गई |
यूँ नहीं डूबा है मुफ़लिस फ़िक्र में
उसकी बेटी भी सियानी हो गई |
अजनबी के साथ क्या कोई गया
ख़त्म उलफत की कहानी हो गई |
रास्ता जब से सदाक़त का चुना
और मुश्किल ज़िंदगानी हो गई |
कुछ तो है तस्दीक़ उनकी शक्ल में
यूँ नही दुनिया दिवानी हो गई |
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला
अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ----
मुहतरम जनाब रवि साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला
अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ----
आदरणीय तस्दीक भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , सभी अशआर खूब कहे हैं ... हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय तस्दीक साहब बहुत अच्छी अौर असरदारगजल कहीं आपने बहुत बहुत मुबारक बाद आपको इस गजल के लिये । सादर
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला
अफज़ाइ का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
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