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मैं , ओ बी ओ हूँ ... ( एक अतुकांत वैचारिक अभिव्यक्ति )

मैं , ओ बी ओ हूँ ...

***************

मैं , ओ बी ओ हूँ ...
मेरी छाया में हर विधा प्राण पाती रही ..
कितने ही शून्य आये
रहे
सीखे
और शून्य से अनगिनत हो गये
फर्श अर्श हुये

पर, मैं नहीं बदली , वही हूँ
वही रहूँगी
यही तो तय किया था मैंने

लेकिन, क्या ये सच नहीं
कि साज़िन्दे अगर सो जायें
बेसुरे हो ही जाते हैं गवैये ?
कितने भी सुरीले हों..

आज
मुझे सोचना पड़ रहा है ..
शब्द 'आज़ादी' के बारे में

सोचना इसलिये भी ज़रूरी है .. क्यों कि शब्द मुर्दा नहीं होते
साथ मे जुड़ा ही होता है भाव !
संतुलन एक अच्छा शब्द है ... आ..हा.. !!
अधिकारों और कर्तव्यों के बीच का संतुलन

अराजकता
एक बुरा शब्द है
वैसे, शब्द कोई बुरा नहीं होता..
बुरे होते हैं भाव !
ये (?) बन्दरपना लाता है
अगर आज़ादी का उस्तरा मिले तो और भी अधिक

सोचती हूँ  .. क्या मुझमें जीने वाले भी सोचते होंगे ?
कि,बन्दरपना ठीक नही हैं ?
कौन जाने !
*********

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2017 at 9:21am

आदरणीय समर भाई , आपका ह्र्दय से आभार ।

Comment by Samar kabeer on April 13, 2017 at 7:53pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,बहुत दिनों बाद आपकी अतुकान्त कविता पढ़ने को मिली,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
शीर्षक'मैं ओबीओ हूँ'पढ़ने के बाद ऐसा लगा था कि आप ओबीओ का परिचय देंगे,लेकिन कविता पढ़ने के बाद ऐसा कुछ भी नहीं मिला,इस पर थोड़ा और मंथन करना था,ये मेरी व्यक्तिगत राय है,एक बात ये कि आपने ओबीओ को स्त्रीलिंग में लिया है,ये बात मुझे जची नहीं,इसे पुल्लिंग भी ले सकते थे ?

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