22 22 22 22 22 22 ( बहर ए मीर )
कटे हाथ लेकर बे चारे घूम रहे हैं
मांग रहे हैं, कहीं सहारे, घूम रहे हैं
कर्मों का लेखा उनका मत बाहर आये
इसी जुगत में डर के मारे, घूम रहे हैं
हाथों मे पत्थर हैं जिनके, उनके पीछे
छिपे हुये अब भी हत्यारे घूम रहे हैं
अँधियारा अब भी फैला है आंगन आंगन
क्यों ये सूरज, चंदा, तारे घूम रहे हैं
शब्द भटक जाते हैं उनके, अर्थ हीन हो
जिनके घर के अब चौबारे घूम रहे हैं
कटा पेड़ धरती से, तो वो सूखेगा ही
भ्रम में हैं, जो बन गुब्बारे घूम रहे हैं
कुछ की सांसें अटकी, कुछ की नाड़ी गायब
तन के मारे , मन से हारे घूम रहे हैं
साफ वसन में दाग ढूँढने की कोशिश में
दूर बीन ले, ग़म के मारे घूम रहे हैं
बचना यारों, पहन उजालों की पोशाकें
गली गली में कुछ अँधियारे, घूम रहे हैं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आ. नीलेश भाई , आपकी सलाह उचित है .. और स्वीकार है .. मै सुधार कर लूँगा । आभार आपका । यद्यपि समान्य नकार भाव् मे भी मत का उपयोग होता है .... पर आपकी सलाह अच्छी है सो स्वीकार है ।
उनके कर्मों का लेखा बस छुपा रहे
आ. गिरिराज जी,
आपने मत को निश्चित ही न आने पाये जैसे इस्तेमाल किया है ...लेकिन मत अक्सर आदेशात्मक होता है...
ऐसा मत करना
मत लाना आदि ....
आपका मिसरा आदेशात्मक नहीं प्रयासत्म्क भाव वाला है अत: मैंने निवेदन किया था ...
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वैसे सानी मिसरे को यूँ गिरह करें तो कैसा रहे ..
उनके कर्मों का लेखा बस छुपा रहे
इसी जुगत में ,,,,,,,,,,,,,,,,,
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सादर
आदरणीय समर भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय समर भाई , .. ना के स्थान पर मत लिया हूँ ... जिसे मै गलत नही समझता ... लेकिन कोई ज़िद नही है . कोई सही बात सूझी तो बदल भी सकता हूँ ...आपकी सलाह भी अच्छी है ... देखता हूँ ।
आदरणीय नीलेश भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया । मत ... अगर भाव बिगाड़ रहा हो तो कुछ सोचूँगा ... अगर मत शब्द को गलत समझते हैं ... तो मुझे गलत नही लगता ...।
आदरणीय मोह. आरिफ भाई . उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
वाह ..बहुत ख़ूब ...
मत बाहर आये ...थोडा खटक रहा है ..
बाक़ी खूब है
सादर
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