For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की -बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
.
छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
.
देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”  
.
क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र 
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
.
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं   
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
.
तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1640

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2017 at 12:44pm

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2017 at 11:36am

आ. भाई नीलेश जी  इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें । साथ ही सार्थक बहस में उपस्थित सज्जनों का आभार जिससे बहुत कुछ सीखने को मिला ।

Comment by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 9:02am
चलिये,दिख गया तो भला हुआ,सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2017 at 8:10am

आ. मनन जी,
दिख रहा है वो तो :))))
.
सादर 

Comment by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 6:47am
बेवजह की दलीलें खीज का परिचायक हैं,सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 11:26pm

आ. मनन जी ,
खीजता वो है जिस के पास दलीलें न हों 
सादर 


Comment by Manan Kumar singh on May 7, 2017 at 11:19pm
खीझ कोई हल नहीं,बचें।खीझ
मे कहा-सुना याद नहीं रहता,सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 10:58pm

आ. मनन जी,
आप आ. समर सर की अंतिम टिप्पणी पढ़ें जिस में   वो मेरे कहे से सहमत हैं.... ....
मैं भी मानता हूँ कि लय बाधित होने जैसी कुछ विशेष परिस्थियों में ऐब है....(पहले भी लिखा है मैंने) ...लेकिन मेरे मिसरे में ये ऐब इसलिए नहीं है क्यूँ कि   ये आम बोलचाल का हिस्सा है .... 
इस के लिये ..मैंने सभी बड़े उस्तादों   के उदाहरण भी    दिए हैं......
आप अपनी बात कह चुके ..... उस पर मैंने अपनी   बात कह ली...... फिर आप विश्यान्त्र करते हुए ...पशु..अदालत..जज..अदावत तक आ गए ....
अत: आप से निवेदन है कि आगे का समय अपनी रचना पर दें.....
मेरी इस ग़ज़ल का जो होना था हो चुका....
मेरा मिसरा यही है..और यूँ ही रहेगा ...
आप जिसे मेरी ग़ज़ल में ऐब बताने पर आमादा हैं ..देख लें कि कहीं आप की किसी रचना  ही वो न हों जो आपके लिये "पर उपदेश कुशल बहुतेरे"  वाली स्थिति बना दे ...
सादर 

Comment by Manan Kumar singh on May 7, 2017 at 10:45pm
आदरणीय, विषयांतर आप हो रहे हैं,मैं नहीं।उस्ताद समर साहिब ने क्या फ़रमाया था,वह भी याद रखना लाजिमी है।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 10:36pm

आ. मनन जी,
मेरी पोस्ट पर कोई कमेंट अनुत्तरित रह जाये तो ये कमेंट करने वाले की तौहीन होगी इसलिए चाहे ये चर्चा को तूल   दे...लेकिन ये करना आवश्यक है.....
मैंने आप से पहले भी निवेदन किया है कि अदब में अदालत को न लायें ...
आप ..लगातार विषयांतर कर रहे हैं.... बेहतर होगा कि आप ग़ज़ल पर ही रहें ...
रही बात ऐब की ..तो  मेरे द्वारा प्रस्तुत उदाहरण पर्याप्त प्रमाण है ..
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service