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चाँद तारे बना टाँकती रह गई

212  212 
झाँकती रह गई |
ताकती रह गई |


चाँद तारे बना
टाँकती रह गई |


अंत है कब कहाँ
आँकती रह गई |


चाशनी हाथ ले 
बाँटती रह गई |


साँच को आँच थी
हाँकती रह गई |


रेत में जब फँसी
हाँफती रह गई |


प्यास कैसे बुझे
बाँचती रह गई |
(मौलिक अप्रकाशित)

 

 

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on May 10, 2017 at 8:15am

आदरणीया छाया शुक्ला जी सादर, बहुत खुबसूरत प्रस्तुति है, बहुत-बहुत बधाई. सादर.

फिरभी मैं चाहूँगा  आदरणीय समर कबीर साहब बताएं क्या यहाँ काफिये का निर्धारण सही हुआ है ? सादर.

Comment by Mohammed Arif on May 10, 2017 at 8:03am
आदरणीया छाया शुक्ला जी आदाब, संक्षिप्त किंतु सारगर्भित ग़ज़ल ।ढेरों बधाई स्वीकार करें । शब्द "भाषती"का क्या अर्थ है ?बताने का कष्ट करें । एक बार मात्रिक विधान भी देख लें । बाक़ी गुणीजन सुझाव देंगे ।

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