जीवन हमको बुद्ध का , देता है सन्देश |
रक्षा करना जीव की , दूर रहेगा क्लेश ||1||
भोग विलास व नारियां, बदल न पाई चाल |
योग बना था संत का, छोड़ दिया जंजाल ||2||
मन वीणा के तार को, कसना तनिक सहेज |
ढीले से हो बेसुरा , अधिक कसे निस्तेज ||3||
बंधन माया मोह का , जकड़े रहता पाँव |
जिस जिसने छोड़ा इसे , बसे ईश के गाँव ||4||
धन्य भूमि है देश की, जन्मे संत महान |
ज्ञान दीप से जगत का,हरे सकल अज्ञान ||5||
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(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया छाया जी अच्छे दोहे रचे हैं आपने , बधाइयाँ स्वीकार करें
आदरणीय anurag vashishth ji आदरणीय समर साहब आप दोनों का मूल्यवान जानकारी के लिए हार्दिक आभार !
सराहना के लिए धन्यवाद सादर |
कृपया इसी प्रकार मार्ग दर्शन करते रहें |
सादर
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आपके स्नेह और दोहों की प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार |
नमन स्वीकारें !
आदरणीय mohammed arif ji दोहों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार |
सादर नमन !
सुंदर सन्देशपरक दोहे, बहुत बहुत बधाई आदरणीय छाया शुक्ला जी ,
मन वीणा के तार को कसना तनिक सहेज, वाह अनुपम
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