For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाँद तारे बना टाँकती रह गई

212  212 
झाँकती रह गई |
ताकती रह गई |


चाँद तारे बना
टाँकती रह गई |


अंत है कब कहाँ
आँकती रह गई |


चाशनी हाथ ले 
बाँटती रह गई |


साँच को आँच थी
हाँकती रह गई |


रेत में जब फँसी
हाँफती रह गई |


प्यास कैसे बुझे
बाँचती रह गई |
(मौलिक अप्रकाशित)

 

 

Views: 1139

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 2, 2019 at 6:48pm

प्यास  कैसे बुझे / बाँचती रह गई

बहुत खूब छाया जी

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 11, 2017 at 10:55am
सादर आभार आदरणीय समर कबीर साहब । सादर ।
Comment by Chhaya Shukla on May 10, 2017 at 7:04pm
जी, आदरणीय मुझे मेरा उत्तर मिल गया । कृपया यूँ ही स्नेह बनाये रखें । सादर
Comment by Samar kabeer on May 10, 2017 at 7:01pm
या तो 'झाँकती,टाँकती,आँकती, वग़ैरह क़ाफ़िए रखिये या
जागती,तापती, चाटती, भाषती, वग़ैरह क़ाफिये रखिये ।
Comment by Chhaya Shukla on May 10, 2017 at 6:54pm
आदरणीय समर कबीर जी आपकी उपस्थिति को नमन
त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित कराने के लिए आभार आपका ।
क्या मतले को
झाँकती रह गई ।
जगती रह गई । कर देने से रचना दोष मुक्त हो जाएगी ?
सादर
Comment by Samar kabeer on May 10, 2017 at 6:10pm
मोहतरमा छाया शुक्ला जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'झाँकती रह गई
ताकती रह गई'
जनाब अशोक रक्ताले जी,मतले को देखें तो क़ाफ़िया बनता है 'ती'और हर्फ़-ए--रवी 'क'
शैर देखें तो:-
'अंत है क़ब कहाँ
नापती रह गई'
इस शैर में क़ाफ़िया हुआ 'ई' और हर्फ़-ए-रवी हुआ 'त'इस लिहाज़ से कुछ अशआर में क़ाफिये अलग हैं कुछ में अलग,इसलिये ग़ज़ल में क़ाफ़िया निर्धरण सही नहीं हो सका ।
Comment by narendrasinh chauhan on May 10, 2017 at 5:49pm

 खूब सुन्दर रचना 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 10, 2017 at 9:29am

बहुत सुंदर अल्फाज 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:37am

आदरनीया छाया जी , छोटी बहर मे बहुत खूब सूरत शेर कहे हैं .... हार्दिक बधाइयाँ ।

मतले मे जो काफिया बन्दी की है  मुझे सही लग रही है ... गुणिजनों का इंतिज़ार करें  अंतिम सच के लिये ।

Comment by Chhaya Shukla on May 10, 2017 at 8:36am
शुक्रिया आदरणीय अशोक रक्ताले जी
मुझे भी आदरणीय समर कबीर जी की प्रतीक्षा है ।
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service