लौकिक अनाम छंद
221 2121 1221 212
तुमने कहा था भूल जा तुमको भुला दिया |
जीना कठिन हुआ भले' जीके दिखा दिया |
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अब और कुछ न माँग बचा कुछ भी तो नहीं
इक दम था इन रगों में जो तुम पर लुटा दिया |
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जो रात दिन थे साथ में वही छोड़ कर गये
था मोह का तमस जो सघन वो मिटा दिया |
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अब चैन से निकल तिरे जालिम जहान से
कोई कहीं न रोक ले कुंडा लगा दिया |
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धक धक धड़क गया बड़ा नाजुक था मेंरा दिल
नश्तर बहुत था तेज जो उसने चुभा दिया |
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(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
मोहतरम जनाब समर कबीर जी शुक्रिया आपका सादर |
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह "कुशक्षत्रप" जी आपकी सराहाना का बहुत बहुत आभार ! कृपया स्नेह बनाये रखें |
आदरणीय निलेश जी आपका सुझाव महत्व पूर्ण है | कृपया स्नेह बनाये रखें | पुनः नमन
जी, आदरणीय mohammed arif जी आपकी उपस्थिति का स्वागत है | सराहना के लियी आभार आपका |
आदरणीय nilesh shevgaonkar जी आपकी उपस्थिति को नमन
मेरी शंका का समाधान हुआ अच्छा लगा | कृपया साथ में संशोधन भी दिया जाता तो सुंदर होता | हृदय से आभार आपका | संशोधन का प्रयास होगा |
जय माँ शारदे !
आ. छाया जी,
आपकी प्रस्तुति का स्वागत है ...
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अव्वल तो ये विधा ग़ज़ल है..गीतिका नहीं...
कुछ लोग बे-वजह इसे गीतिका नाम देकर इसका हिंदी करण करने पर आमादा हैं जिस का विरोध किया जाना चाहिए.
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मतले के सानी मिसरे में पर को 11 में नहीं बाँधा जा सकता, वो 2 ही रहेगा ..इसी तरह चल भी 11 नहीं होगा अत: ये दोनों मिसरे बहर में नहीं हैं ..
जान स्त्रीलिंग है अत: लुटा दी आयेगा ..लुटा दिया कहाँ ग़लत है ...
कहन पर काम करते रहिये ....और अच्छी ग़ज़लें पढ़िये तो कहन अपने आप बेहतर होगा ...
सादर
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