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आदरणीय सुनील जी, मैं सोच ही रहा था कि कहीं कोई इसकी तुलना निर्भया से न कर दे और आपने कर ही दी. खैर, अगर उम्र को ही पैमाना बनाना है तो इस उम्र के बहुत से बच्चे जीनियस भी रहे हैं, तुलना उनसे भी तो की जा सकती है? हर समस्या अपने आप में एक अलग तरह की समस्या होती है. इसलिए उसका ट्रीटमेंट भी अलग तरह का होता है. 'रेअर ऑफ़ थे रेअरेस्ट' की संकल्पना यहीं से उपजी है. इस दृष्टि से आत्महत्या की बलात्कार से तुलना सरासर बेमानी है.
//तो इस उम्र वाले लड़के या लड़कियाँ, जो कुछ भी करने से पहले सह नही सोचते कि उनके पीछे वालों का उनके बाद/उनकी हरकत के बाद क्या होगा..वे आखिर हैं कौन..?//
वे हमारे ही समाज की उपज हैं. जितना वे दोषी हैं, क्या उतना ही हमारा समाज भी दोषी नहीं है? मैंने बस इसी तरफ ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश की थी.
//कौन सी शब्द संज्ञा उनके लिए प्रयोग में ली जाये?//
पलायनवादी?
//अपरिपक्वता अगर उम्र का लिहाज़ करती तो शायद हर बच्चा मायूस होकर आत्महत्या कर लेता|//
बिलकुल. अगर Nurture जैसी चीज न होती. आप मानें न मानें मगर परिपक्वता या अपरिपक्वता उम्र का लिहाज करती है. हो सकता है आप यह कहें कि बहुत से बूढ़े व्यक्ति भी तो अपरिक्व होते हैं. जी, ज़रूर होते हैं. मगर क्या आप कोई ऐसा बालक दिखा सकते हैं जो शैशवावस्था में ही परिपक्व हो गया हो?
//समझाने के बावजूद परिस्थितियों से भागने वाला व्यक्ति 'धावक' नही 'भगौड़ा' ही कहलाता है |//
सहमत हूँ. मगर क्या परिस्थितियों से भागने वाला हर व्यक्ति भगौड़ा होता है? क्या हर जगह भागने वाला ही दोषी होता है, परिस्थितियाँ नहीं? इसी 'समझाने' को लेकर मैंने आदरणीया राहिला जी से निवेदन किया था कि इसके लिए वे कोई स्पेसिफिक उदाहरण दें ताकि परिस्थिति और भी स्पष्ट हो सके.
सादर.
आदरणीया राहिला जी, यदि आप "किशोरों में आत्महत्या की समस्या" को दर्शाना चाहती हैं जो कि मुझे लगता है (आपकी पिछली टिप्पणी को देखकर) कि आप चाहती हैं तो आपने उम्र का चुनाव सही किया और फिर अब इस दृष्टि से उम्र मायने नहीं रखती इसलिए इसकी चर्चा का कोई मतलब नहीं. अब जब बात किशोरों की है तो यह भी सच है और मैं आपसे सहमत हूँ कि वजह का बहुत गंभीर होना ज़रूरी नहीं है क्योंकि वो बहुत ही भावुक होते हैं. अब समस्या इस समस्या के ट्रीटमेंट की है. क्या किशोरों में बढ़ती हुई आत्महत्या जैसी गंभीर समस्या का निदान मरणोपरांत मिलने वाले दुगने या अधिक दंड का भय दिखाकर करना ठीक है? विचार कीजिएगा. रही बात भगौड़े की तो मुझे लगता है कि एक पंद्रह-सोलह साल के उस बच्चे के लिए जिसने परीक्षा में असफल होने पर अपना जीवन समाप्त कर लिया हो यह शब्द कुछ ज्यादा है. सादर.
आदरणीया राहिला जी, आपके द्वारा उठाये गए प्रश्नों के सन्दर्भ में मैं अपना पक्ष निम्नवत रखना चाहूँगा.
// किशोर को भगौड़े की संज्ञा देने पर आपत्ति क्यों?कोई तार्किक वजह।//
जी हाँ. एक वयोवृद्ध की अपेक्षा एक किशोर का अपने आस-पास के वातावरण से प्रभावित होना ज्यादा आसान है. साथ ही, एक किशोर बहुत भावुक भी होता है. इसलिए उसके ऊपर पूर्णतः दोषारोपण करना मेरी समझ से पूरी तरह उचित नहीं है. बाल सुधार गृह इसी विचार की परिकल्पना हैं. आपकी कथा का मुख्य पात्र ऐसा ही एक किशोर है जो एक महत्त्वपूर्ण परीक्षा में असफल होने पर आत्महत्या कर लेता है. आपका सन्देश स्पष्ट है कि जब वह सभी सुखों से परिपूर्ण था और उसे कई माध्यमों से छोटी मोटी असफलता से विचलित न होने का सन्देश तथा आगामी सुनहरे भविष्य का भरोसा दिलाया गया था तो उसका पलायनवादी रुख़ अपनाते हुए आत्महत्या करना गलत है. प्रश्न उठता है कि उसने पलायनवादी दृष्टिकोण अपनाया क्यों? ज़ाहिर है कि परीक्षा में असफल होने से. पर यह गौण कारण है. मूल कारण समाज (या अभिभावक अथवा व्यक्तिविशेष) की नज़रों में सफल न हो पाना अथवा उसकी अस्वीकार्यता है. सर्वसुखों से परिपूर्ण होने और विचलित न होने तथा सुनहरे भविष्य का सन्देश मिलने के बावजूद आत्महत्या करने से साफ़ है कि उसके ऊपर समाज का दबाव कहीं अधिक रहा होगा जिस वजह से वह उनसे (सन्देश और सुखों से) प्रभावित होने की अपेक्षा इनसे प्रभावित हुआ. क्या उस किशोर पर यह दबाव बनाने वाले लोग दोषी नहीं हैं? शायद हाँ. इसीलिए प्रमुख अमरीकी मनोवैज्ञानिक वर्जिनिया सैटिर का कहना पड़ा कि किशोर राक्षस नहीं होते.
कथानक पर लेखक का एकाधिकार होता है. इसलिए आप इस कथा का मुख्य पात्र किशोर को रख सकती हैं. यह आपकी स्वतंत्रता है. किन्तु आपकी जगह यही सन्देश यदि मुझे देना होता तो मैं इस कथानक का मुख्य पात्र किसी अधिक उम्र के व्यक्ति को बनाता जैसे 40-45 साल के किसी ऐसे प्रतियोगी को जिसने नौकरी के अंतिम प्रयास में असफल होने पर अपनी जिम्मेदारियों से भागते हुए आत्महत्या कर ली हो. अपने पीछे बूढ़े माँ-बाप, पत्नी और दो छोटी बेटियों को छोड़कर.
//"कई माध्यमों से "इस बात से पाठक को संकेत दिया जा रहा है कि कई लोगों द्वारा समझाया गया होगा। जैसे माँ,शिक्षक ,और आजकल तो पत्र पत्रिकाओं में भी इस बाबत् कई लेख ,कहानियां छप रही हैं ।आजकल तो कई वीडियो तक वायरल हो रहे है ।तब भी क्या मुझे सब के नाम लेकर, उदाहरण सहित समझाने की जरूरत थी क्या?//
जी नहीं. सबका नाम लेकर विस्तृत उदाहरण देने की बिलकुल भी आवश्यकता नहीं है. यह लघुकथा के शिल्प के भी विपरीत भी होगा. आप यदि यह सब नहीं भी देंगी तो भी पाठक समझ लेगा किन्तु यदि कोई संक्षिप्त उदाहरण दे दिया जाता तो स्पष्टता और बढ़ जाती. बस इसीलिए मैंने ऐसा आग्रह किया था.
आपको पुनः बहुत-बहुत बधाई. ढेर सारी शुभकामनाएँ. सादर.
आदरणीया राहिला जी बहुत महत्वपूर्ण बिषय बस्तु को बड़े ही शानदार तरीके से आपने प्रस्तुत किया है ..बहुत ही सधे अंदाज़ में लिखी इस शानदार रचना के लिए ढेर सारे बधाई स्वीकार करें सादर
आदरणीया राहिला जी, बढ़िया लघुकथा है. मेरी तरफ से हार्दिक बधाई प्रेषित है. एक सुझाव है या प्रश्न, आप जो भी कह लें, आपकी कथा में लड़के की उम्र 15-16 साल है. क्या इतनी कम उम्र के बच्चे को भगोड़े की संज्ञा दी जा सकती है? क्या उससे अधिक उसके आस-पास का समाज इसके लिए दोषी नहीं है? साथ ही, //इस बालक को कई माध्यमों से छोटी मोटी असफलता से विचलित न होने का सन्देश तथा आगामी सुनहरे भविष्य का भरोसा दिलाया गया था।// कैसे? और कब? क्या इसे किसी उदहारण द्वारा और स्पष्ट नहीं किया जा सकता? आपकी लघुकथा का सन्देश अच्छा है. इसलिए संभव हो तो इन बिन्दुओं पर गौर कीजिएगा. सादर.
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