१२१२/११२२/१२१२/२२ (११२)
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किसे गुरेज़ जो दो-चार झूठ बोले है,
मगर वो शख्स लगातार झूठ बोले है.
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चली भी आ कि तुझे पार मैं लगा दूँगी,
हमारी नाव से मँझधार झूठ बोले है.
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सवाल-ए-वस्ल पे करना यूँ हर दफ़ा इन्कार
ज़रूर मुझ से मेरा यार झूठ बोले है.
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कहानी ख़ूब लिखी है ख़ुदा ने दुनिया की,
कि इस में जो भी है किरदार, झूठ बोले है.
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पटकना रूह का ज़िन्दान-ए-जिस्म में माथा,
बिख़रना तय है प् दीवार झूठ बोले है.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
आभार आ. बृजेश जी
शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी
शुक्रिया आ. ब्रिजेश जी,
यहाँ बात एक शख्स की हो रही है न कि झूठ की संख्या की अत: हैं नहीं है ही आएगा
सादर
शुक्रिया आ. अनुराग जी
शुक्रिया आ. समर सर
शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी
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