इतनी ज्यादा बात न कर
वादों की बरसात न कर
ह्रदय बड़ा ही नाजुक है,
उस पर यूँ आघात न कर
ख्यात न हो कुछ बात नहीं,
पर खुद को कुख्यात न कर
मानव को मानव रहने दे,
ऊंची नीची जात न कर
खुलकर गले न मिल पाए,
पैदा वो हालात न कर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Mahendra Kumar जी आपका हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय narendrasinh chauhan जी हौसलाफजाई के लिए आपका दिल से शुक्रिया
आदरणीय vijay nikoreजी हौसला अफजाई के लिए आपका ह्रदय से आभार
आ. बसंत जी, बढ़िया लगी आपकी ग़ज़ल. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
सुन्दर रचना
बहुत ही अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय बसंत जी
आदरणीया KALPANA BHATT जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया हेतु दिल से शुक्रिया
आदरणीया Arpana Sharma जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया पर आपका ह्रदय से आभार
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