मापनी २२ २२ २२ २२
यदि करना इनकार नहीं है,
क्यों करता इकरार नहीं है
सच से रहता उसका झगड़ा,
झूठ मुझे स्वीकार नहीं है
शूल नहीं है प्रेम अगर, तो,
फूलों का भी हार नहीं है
दिल से कभी न कह पाओगे,
तुमको मुझसे प्यार नहीं है
क्यों जलता है तन मन इतना,
प्रेम अगर अंगार नहीं है
लोकतंत्र है कहने को तो,
जनता की सरकार नहीं है.
प्रेम बयार बहेगी कैसे,
खुला ह्रदय का द्वार नहीं है.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीया KALPANA BHATT जी आपका दिल से शुक्रिया
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय बसंत कुमार जी | हार्दिक बधाई |
आदरणीय Manan Kumar singh जी आपका ह्रदय से बहुत बहुत आभार
आदरणीय Gurpreet singh जी आपकी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत बढ़िया आदरणीय बसंत कुमार जी ,,, आपकी ये पूरी ग़ज़ल बहुत पसंद आई
आदरणीय Mohammed Arif जी आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय Shyam Narain Verma जी आपका ह्रदय से आभार
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