मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२
नफरत के किले सारे, अब हमको ढहाना है
जब हाथ मिलाया है, दिल को भी मिलाना है
चुपचाप न बैठोगे, पाओगे सदा मंजिल,
दुश्मन है तरक्की का, आलस को भगाना है
बारूद के ढेरों पर, इंसान यहाँ बैठा,
आतंक के परचम को, दुनिया में झुकाना है
हर रोज हमें खलती, पानी की कमी बेशक,
पर फूल मरुस्थल में, हमको ही खिलाना है
वादा जो किया तुमने, हर हाल निभा देना,
ये प्यार की दुनिया है, चलता न बहाना है
हों लाख कड़े पहरे, दरिया के किनारों पर
इस प्रेम के दरिया में, डुबकी तो लगाना है
खुशियाँ हों भले थोड़ी, मिल साथ मना लेना,
भरमार गमों की है, कोई न ठिकाना है
''मौलिक एवं अप्रकाशित''
Comment
आदरणीय Mahendra Kumar जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से आभार
आदरणीय Mohammed Arif जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से आभार
हर रोज हमें खलती, पानी की कमी बेशक,
पर फूल मरुस्थल में, हमको ही खिलाना है ...वाह!
बढ़िया ग़ज़ल है आ. बसंत जी. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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