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एक दो तीन- - - एक दो तीन

फिर अनगिन

मन्डराती रहीं चीलें

घेरा बनाए

आतंक के साएँ में

चिंची-चिंची-चिंची

पंख-विहीन |

एक दो तीन- - -

फुदकी इधर से

फुदकी उधर से

घुस गई झाड़ी में

पंजों के डर से

जिजीविषा थी जिन्दा

करती क्या दीन !

एक दो तीन- - -

झाड़ी में पहले से

कुंडली लगाए

बैठे थे विषदंत

घात लगाए

टूट पड़े उस पे

दंत अनगिन | एक दो तीन- - -

प्राणों को खोकर

पंखों को पाकर

चिड़िया पूछती है

पंख फड़फड़ा कर

किन चोंचों में हैं

आज़ादी के दिन |

एक दो तीन- - - सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by रामबली गुप्ता on June 13, 2017 at 4:30pm
अतुकान्त पर अच्छा प्रयास हुआ है मित्रवर। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर
Comment by somesh kumar on June 12, 2017 at 8:17am

शुक्रिया कृपया ऐसे ही अपने स्नेह एवं मार्गदर्शन देते रहें 

सविनित

Comment by Mohammed Arif on June 11, 2017 at 5:56pm
आदरणीय सोमेश जी आदाब, बहुत ही मासूम बच्चों-सी अभिव्यक्ति ।अच्छा प्रयास । बधाई स्वीकार करें ।

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