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मुखौटा

संसद से सड़क तक

फैले हुए मुखौटे मुँह चिढ़ाते हैं मुझे

और मैं हंसकर उनकी उपेक्षा कर देता हूँ

और मुझसे यह अपेक्षा की भी जाती है !

आखिर वो भी तो मेरी - - - सी स्सस्सस्सीईई

ढाँप लेता हूँ

कम्बल बढ़ने लगी है सर्दी

पहन लेता हूँ मुखौटा

बढ़ने लगी है भीड़ सी--- सीईईईईईईई !

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 460

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2016 at 11:01am

पहन लेता हूँ मुखौटा

बढ़ने लगी है भीड़ सी--- सीईईइ, - वाह ! अच्छी प्रस्तुति | मुखोटा पहनने से सुरक्षा है तो किसी को मुखौटा बताने में बड़ा ख़तरा भी है श्री सोमेश कुमार जी | एक RSS नेता तो इसके भुक्त-भोगी भी है !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 4, 2016 at 10:32pm

आदरणीय सोमेश जी, बढ़िया प्रस्तुति. हार्दिक बधाई. सादर.

Comment by Samar kabeer on December 4, 2016 at 2:50pm
जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,भावपूर्ण रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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